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MP हाई कोर्ट ने कहा- 30 साल बाद नौकरी की उम्मीद रखना बेकार -शिक्षक की ओर से सात साल की देरी से दायर याचिका खारिज

ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने शिक्षक ब्रजराज सिंह चौहान की सरकारी नौकरी देने की मांग को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब 30 साल बीत जाने की स्थिति में कोई भी राहत देने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालय में दावा खारिज होने के बाद सात साल की देरी से याचिका दाखिल करने को लेकर टिप्पणी की कि ऐसे दर्शक जो दूसरों की सफलता का इंतजार करते हैं और फिर अदालत से राहत चाहते हैं, उन्हें राहत नहीं दी जानी चाहिए।मामला श्योपुरकला के हजारेश्वर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से संबंधित है, जहां ब्रजराज सिंह चौहान उप-प्राचार्य के पद पर कार्यरत थे। राज्य सरकार ने 27 जून 1995 को इस निजी स्कूल का अधिग्रहण किया और 131 कर्मचारियों को शासकीय सेवा में समायोजित करने का आदेश जारी किया था, लेकिन सरकारी स्वीकृत स्टाफिंग पैटर्न में उप-प्राचार्य का पद न होने के कारण चौहान को नौकरी नहीं मिल सकी।

इसके बाद उन्होंने लंबी कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से अपना दावा प्रस्तुत किया। स्क्रीनिंग कमेटी ने 24 जून 2013 को उन्हें लेक्चरर (गणित) पद के लिए योग्य पाया, किंतु राज्य सरकार ने आठ जून 2015 को पदों की अनुपलब्धता और आवश्यक योग्यता के अभाव का हवाला देते हुए उनका दावा अस्वीकार कर दिया।

इसको उन्होंने सात साल बाद यानी वर्ष 2022 में कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि 131 स्वीकृत पद पहले ही भरे जा चुके हैं और याचिकाकर्ता अन्य विद्यालयों में रिक्त पदों पर समायोजन की मांग नहीं कर सकते। हाई कोर्ट की एकलपीठ ने कहा कि इतने लंबे अंतराल के बाद न्यायिक राहत की उम्मीद नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता को वर्ष 2015 में ही अपने दावे के खारिज होने की जानकारी थी, इसके बावजूद उन्होंने सात वर्ष बाद 2022 में अदालत का दरवाजा खटखटाया।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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