शाहजहांपुर : दलहन की मुख्य फसलों में से एक मटर की फसल है जिसकी खेती उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसान बड़े पैमाने पर करते हैं. कई किसान मटर की कच्ची हरी फलियां तोड़कर सब्जी के तौर पर बेच देते हैं तो कई किसान इसको पकाकर कटाई करते हैं और दाल का उत्पादन होता है. हरी मटर की फसल बेहद कम लागत में अच्छी आमदनी देने के लिए किसानों के बीच लोकप्रिय है, लेकिन हरी मटर की फसल में लगने वाला उकठा रोग फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है, जिसका नियंत्रण समय पर करना जरूरी है.
जिला उद्यान अधिकारी डॉ पुनीत कुमार पाठक ने बताया कि मटर की फसल में लगने वाला उकठा रोग एक गंभीर समस्या है. इस रोग की शुरुआती लक्षणों में पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं, पौधे का तना या फिर जड़ को काटने पर अंदर से भूरे रंग का दिखाई देता है और धीरे-धीरे पौधा मुरझा कर सूख जाता है. दरअसल, फंगस की वजह से पनपने वाला यह रोग जो कि पौधे की जड़ों को सबसे पहले प्रभावित करता है. इसकी वजह से पानी और पोषक तत्वों का अवशोषण पौधा नहीं कर पाता है और उसके बाद यह पौधा मुरझा कर सूख जाता है. बचाव के लिए किसान बीज उपचार और मृदा उपचार जरूर करें.
3 ग्राम प्रति किलो वाला जुगाड़
इस रोग से फसल को बचाने के लिए बीज उपचारित करना बेहद जरूरी है. बीज को उपचारित करने के बाद ही मटर की फसल की बुवाई करें. बीज उपचार करने के लिए 3 ग्राम थीरम (Thiram) प्रति किलो बीज के हिसाब से इस्तेमाल करें. इसके अलावा किसी सिस्टमैटिक कीटनाशक का इस्तेमाल भी भी उपचारित करने के लिए करें.
ट्राईकोड्रमा से करें ये काम
मटर की स्वस्थ फसल के लिए मृदा उपचार भी बेहद जरूरी है. क्योंकि यह रोग फंगस जनित है. ऐसे में खेत की गहरी जुताई करने के बाद अंतिम जुताई से पहले ट्राईकोड्रमा को गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दें, बाद में पाटा लगाकर खेत को समतल कर मटर की बुवाई कर दें.
संक्रमित पौधों को करें नष्ट
मटर की फसल की बुवाई करने के बाद अगर फसल में उकठा रोग के लक्षण दिखाई दें, तो रोग प्रभावित पौधे को उखाड़ कर खेत से बाहर कर नष्ट कर दें. ऐसा करने से रोग का फैलाव कम हो जाएगा, बाकी की फसल सुरक्षित रहेगी.




