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Gustakhi Maaf: सोए हुए मजदूर के मुंह पर किया पेशाब

-दीपक रंजन दास
यह कैसी मानसिकता है जो गरीब इंसान को जानवरों से भी तुच्छ समझती है। इधर कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे रील्स और शाट्र्स आ रहे हैं जिसमें कुछ पैसे वाले लोग गरीबों का मजाक बनाते दिखाई दे रहे हैं। वे गरीबों को उनकी गरीबी के लिए जलील करते हैं। पर ये स्क्रिप्टेड स्टोरी होती है जिसमें अंत-पंत पीडि़त कोई बड़ा आईएएस या किसी कंपनी का मालिक निकल आता है। मजाक उड़ाने वालों को सबक मिल जाता है और वो शर्मिंदा हो जाते हैं। पर हकीकत इससे काफी अलग है। एक ऐसी ही घटना तहजीब के शहर लखनऊ से आई है। यहां एक युवक ने सो रहे मजदूर को जगाने के लिए उसके मुंह पर पेशाब कर दिया। जब मजदूर ने इसका विरोध किया तो उसकी पिटाई भी कर दी गई। युवक ने इस घटना का वीडियो भी बनाया और उसे वायरल भी कर दिया। मजदूर की शिकायत पर पुलिस मामले की जांच कर रही है। एक ऐसी ही घटना पिछले साल मध्यप्रदेश के सीधी जिले से सामने आई थी। वहां नशे में धुत्त एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता ने सीढिय़ों पर बैठे एक आदिवासी युवक पर पेशाब कर दिया था। अपनी पार्टी के नेता की इस हरकत के लिए मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी और फिर आरोपी के घर पर बुलडोजर भी चलवा दिया। ऐसी ही एक घटना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र से सामने आई थी जिसमें एक व्यक्ति ने शराब पीने के बाद पहले अपने दोस्त की पिटाई कर दी औऱ फिर उसके कान में पेशाब कर दिया। दरअसल, यह वर्ण व्यवस्था का ही एक विकृत रूप है जिसमें कुछ लोग इस ऐंठन में रहते हैं कि वे मानव श्रेष्ठ हैं। उन्हें लगता है कि अपनी इन ऊलजलूल हरकतों से वो गरीब, विशेषकर नीची जाति के लोगों को उनकी जगह दिखा रहे होते हैं। दरअसल, यही वह मानसिकता है जिसे समय-समय पर न केवल समाजसुधारकों ने, बल्कि सरकारों ने भी तोडऩे की कोशिशें की हैं। समाज सुधार की इन कोशिशों को ब्रिटिश कालीन भारत में भी नकारने की कोशिशें हुई हैं और आजाद भारत का संविधान भी ऐसी हरकतों के खिलाफ मुखर है। अब तक तो कई पीढिय़ां बदल गईं पर लगता है कि यह दोष अब भी उनकी डीएनए से गया नहीं है। ऐसी घटनाओं पर सर्वाधिक मुखर तो स्वयं हिन्दू समाज के पैरोकारों और सनातन को श्रेष्ठ बताने वालों को होना चाहिए। पर आश्चर्य कि वो खामोश हैं। क्या उनके मौन को ऐसी घटनाओं का समर्थन मान लिया जाए? यदि ऐसा ही है तो जो लोग हिन्दुओं को एकजुट करने का सपना देख रहे हैं, उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए। जड़ें कमजोर होती हैं तो पेड़ों के गिरने का कारण बन जाती हैं। नींव खोखली हो जाए तो अट्टालिकाएं भी ध्वस्त हो जाती हैं। क्या फायदा शिक्षा के इतने प्रचार प्रसार का। ऐसे लोगों का हुक्कापानी बंद होना चाहिए।

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