धर्म

8 अप्रैल को लगेगा साल का पहला सूर्य ग्रहण, जानें भारत में इसका प्रभाव

खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर खास प्रभाव पड़ता है। ग्रहों की स्थिति में बदलाव के साथ-साथ व्यक्ति के किस्मत में भी बदलाव होते रहते हैं। इनमें सूर्य और चंद्र ग्रहण बेहद महत्वपूर्ण हैं।

इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल, 2024 को लगने वाला है। हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। अतः इसका किसी प्रकार का कोई प्रभाव भारत में नहीं होगा और ना ही इसका सूतक काल माना जाएगा।

आपको बता दें, यह सूर्य ग्रहण (Surya Grahan 2024) उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका में पूर्ण रुप से दिखाई देगा। 

  • सूर्य ग्रहण का समय: 8 अप्रैल रात 09:12 मिनट से मध्य रात्रि 01:25 मिनट तक रहेगा 
  • सूर्य ग्रहण की कुल अवधि: 4 घंटे 25 मिनट 

आइए, अब जान लेते हैं कि सूर्य ग्रहण क्या है? और यह कब होता है?

सूर्य ग्रहण क्या है?

सूर्य ग्रहण आकाश में होने वाली एक सामान्य घटना है। सूर्य ग्रहण हर बार एक ही स्थान पर हो ऐसा जरुरी नही होता। पृथ्वी पर हर तीन साल में लगभग दो पूर्ण सूर्य ग्रहण होते हैं। उनकी छाया लगभग 80 से 90 किमी चौड़ी होती है। पृथ्वी पर एक ही स्थान में हर चार सौ वर्ष में दो पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देते हैं। 

8 अप्रैल को होने वाला सूर्य ग्रहण (Surya Grahan 2024) अमेरिका में दिखाई देगा। जो मैक्सिको से शुरू होगा और कनाडा तक दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा। लेकिन इसका लाइव स्ट्रीम किसी अन्य माध्यम से देखा जा सकता है।

सूर्य ग्रहण कब होता है? 

सूर्य ग्रहण खगोल की एक ऐसी घटना है, जिसमे सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा के आने से पृथ्वी पर आने वाला सूर्य का प्रकाश रुक जाता है। 

ऐसे में सूर्य के प्रकाश के अभाव के कारण रोगाणु बढ़ने लगते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए परम्पराओं में बहुत सी बातों का विचार किया जाता है।

सूर्य-चन्द्र की गणनात्मक स्थिति जब एक जैसे अंशों पर होती है, तब ये ग्रहण की स्थिति बनती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार क्रांति वृत्त में जब सूर्य चन्द्र की स्थिति के अनुसार शर का अभाव होता है तो ग्रहण की स्थिति बनती है।

सूर्य ग्रहण होने से क्या होता है? 

वैसे तो सूर्य और पृथ्वी के बीच अन्य ग्रह (बुद्ध-शुक्र) भी आते हैं। परन्तु, पृथ्वी के पास चन्द्रमा होने से इसकी छाया पृथ्वी पर आती है। जिसके कारण ग्रहण का असर हमे दिखता है। जब सूर्य की छाया पृथ्वी पर आती है, और सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध होता है। तो, पृथ्वी पर बहुत से जीवाणु पैदा होने लगते हैं। जिसके प्रभाव से नाना प्रकार के रोग पैदा होने लगते हैं। रोगों से बचने के लिए ही हमे ग्रहण के होने न होने की जानकारी होना जरुरी होता है।

सूर्य ग्रहण में क्या ना करें

सनातन धर्म वैज्ञानिक तर्क के आधार पर नियमों का पलान करने वाली परम्पराओं का निर्वहन करता है। सूर्य ग्रहण के समय ऐसे बहुत से नियम हैं, जिनका पालन हमेंं करना चाहिए।

  • खाना नहीं खाना चाहिए।
  • सोना नहीं चाहिए।
  • कोई मंगल कार्य नहीं करना चाहिए।
  • किसी नये कार्य की शुरवात नही करनी चाहिए।
  • ग्रह प्रवेश नहीं करना चाहिए।
  • विवाह नहीं करना चाहिए।
  • मैथुन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को सोना नहीं चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को कुछ काटना नहीं चाहिए।

सूर्य ग्रहण में क्या करें 

सूर्य ग्रहण का समय कुछ कार्य करने के लिए शुभ माना जाता है। ऐसे समय में ध्यान करने के लिए पूजा पाठ करने के लिए और मन्त्र सिद्ध करने के लिए बहुत अच्छा समय माना जाता है।

  • अन्न का दान करें।
  • कपडे का दान करें।
  • मन्त्र जाप करें। 
  • धार्मिक हवन करें। 
  • इष्ट का ध्यान करें।
  • किसी की सहायता करें। 
  • गरीबों को दान दें। 
  • बीमारों को दवाई का दान करें।

    सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा

    ग्रहण के विषय में पौराणिक कथाओं से पता लगता है। प्राचीन काल में समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त हुआ। इसके बाद देवता और असुरों में विवाद हो गया कि अमृत पान कौन करेगा। विवाद को बढता देख भगवान विष्णु जी ने  मोहिनी रूप धारण किया और देवता और असुरों को एक एक कर के अमृत पान करवाने के लिए मना लिया और एक एक कर के सबको अमृत पान करवाने लगे। परन्तु मोहिनी रूप धारण किये हुए चतुराई से विष्णु भगवान जी ने अमृत कलश बदल बदल कर देवताओं को और असुरों को अमृत पिलाने का नाटक करते हुए सबको शान्त रखा और देवताओं को अमृत और असुरों को साधारण पानी पिला रहे थे, तभी उनकी इस चतुराई को स्वरभानु नाम के असुर ने समझ लिया, और उसने देवताओं का रूप धारण किया और देवताओं की तरफ जाकर शामिल हो गया।

    जब विष्णु जी देवताओं को अमृत पान करवा रहे थे, तो अमृत पान के दौरान सूर्य और चंद्र देव ने देवताओं के बीच असुर स्वरभानु को पहचान लिया। उन्होंने ये बात तुरन्त भगवान विष्णु जी को बता दी। उस समय भगवान विष्णु जो मोहिनी रूप धारण किये हुए थे,वो स्वरभानु को भी अमृत पान करवा चुके थे। अमृत गले तक पहुचा ही था कि, तभी भगवान विष्णु जी ने अपना वास्तविक रूप धारण किया और अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु के सिर को धड़ से अलग कर दिया।

    परन्तु तब तक स्वरभानु अमृत का पान कर चुका था। इस लिए उसकी मृत्यु तो नही हुई परन्तु विष्णु भगवान जी ने अपनी लीला कर दी और स्वरभानु को मुक्त कर दिया। स्वरभानु अमर हो गया परन्तु भगवान जी ने उसके 2 टुकड़े कर दिए और अलग अलग 180 डिग्री की दिशा में फेंक दिए, जिसे आज एक को राहु और दुसरे को केतु के नाम से जाना जाता है। तब से चन्द्र और सूर्य देव राहु केतु के शत्रु हो गए और वो चन्द्र और सूर्य को अपना ग्रास रूप बना कर ग्रहण लगाने लगे।  

Manoj Mishra

Editor in Chief

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