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Gustakhi Maaf: खुली किताब से ओपन स्कूल की बोर्ड परीक्षा

-दीपक रंजन दास
साल 2008 में छत्तीसगढ़ राज्य ओपन स्कूल की स्थापना की गई. योजना के तहत शिक्षा से वंचित वर्ग को कक्षा 10 वीं व कक्षा 12 वीं में प्रवेश देकर व्यक्तिगत संपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है. साल में दो बार अगस्त-जनवरी एवं फरवरी-जुलाई माह में परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं. छात्रों को पांच वर्ष के अंतराल में परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु अधिकतम नौ अवसर प्रदान किये जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य ओपन स्कूल की क्रेडिट योजनांतर्गत अन्य मान्यता प्राप्त मण्डलों / अन्य राज्य ओपन स्कूलों के उत्तीर्ण छात्रों को भी परीक्षा उत्तीर्ण करने की सुविधा है. जाहिर है कि इस परीक्षा को कोई भी सीरियसली नहीं लेता. कई राज्यों में तो इन परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने वालों को मान्यता तक नहीं है. एक राज्य की ओपन परीक्षा पास करने के बाद छात्र दूसरे राज्यों में शिक्षा सलाहकारों के जरिए कालेजों में दाखिला ले लेते हैं. सरकारी नौकरी और सेना में जाने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए भी ये सर्टिफिकेट कागज का टुकड़ा ही साबित होते हैं. इसलिए जब सक्ती जिले के छापरा से खबर आई कि वहां ओपन स्कूल बोर्ड परीक्षा में थोक में नकल करायी जा रही है तो किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. सबको पता है कि स्कूल में क्या हो रहा है. परीक्षा लेने के लिए जिम्मेदार शिक्षक और केन्द्र प्रभारी तक इन परीक्षाओं में खुल कर कमाई करते हैं. पैसे दो मोबाइल, किताब, चिट जो मन में आए लेकर परीक्षा कक्ष में जाओ. उन्हें भी पता है कि सबकुछ लेकर परीक्षा में बैठने के बाद भी गिनती के बच्चे ही पास होंगे. शायद इसलिए जब एक वीडियो पत्रकार ने इस अच्छी खासी चल रही व्यवस्था में सेंध लगाने की कोशिश की तो उसकी पिटाई हो गई. किसी को सर्टिफिकेट चाहिए तो किसी को मौके पर चार पैसे कमाने हैं. पर बदनामी किसी को नहीं चाहिए. किसी को क्या हक बनता है कि वह किसी के जमे जमाए कारोबार में उंगली करे. जब ग्रेजुएट की कोई इज्जत नहीं रही तो किसी को मैट्रिक पास होने से रोककर भी क्या ही हासिल होना है. फिलहाल तो एमबीए की डिग्री सभी डिग्रियों की सिरमौर बनी हुई है. डाक्टर, इंजीनियर, सीए सभी एमबीए कर रहे हैं. इस बीच डाक्टर ऑफ मैनेजमेंट की डिग्री के भी विज्ञापन आने लगे हैं. हालांकि, इसे शार्ट में क्या कहेंगे अभी ज्यादा साफ नहीं है पर इसके आवेदकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. ये जो ओपन स्कूल के बच्चे हैं वो भी कोई न कोई ऑनलाइन कोर्स कर ली लेंगे. किसी न किसी विश्वविद्यालय से डाक्टरेट भी हो सकते हैं. पर क्या इन बच्चों में वाकई इतना आगे तक पढ़ने की इच्छा है? इसमें वो ही बच्चे ज्यादा हैं जो स्कूल जीवन में खेलकूद या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में व्यस्त थे. अब उन्हें नौकरी चाहिए जिसके लिए 10वीं, 12वीं पास होना भी उतना ही जरूरी है.

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