नई दिल्ली। एक वक्त था, जब केरोसिन (Kerosene) यानी मिट्टी का तेल या फिर घासलेट गांव के हर घर का जरूरी हिस्सा था। लालटेन से लेकर खाना पकाने वाले स्टोव तक इसका इस्तेमाल होता था। फणीश्वरनाथ रेणु ने अपनी कहानी ‘पंचलाइट’ में भी केरोसिन का जिक्र बड़ी खूबसूरती से किया है। इसे सरकारी राशन की दुकानों पर रियायती दाम पर भी बेचा था। लेकिन, अब यह बाजार में खोजने पर भी नहीं मिलता।
लेकिन पिछले एक दशक में तस्वीर बिल्कुल बदल गई है। अब तो रसोई से केरोसिन का डिब्बा बिल्कुल ही गायब हो गया है। सरकारी आंकड़े भी यही बताते हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की लेटेस्ट रिपोर्ट ‘Energy Statistics India 2024’ बताती है कि 2013-14 से 2022-23 के बीच मिट्टी के तेल की खपत में सालाना आधार पर करीब 26 फीसदी भारी गिरावट आई है
क्यों घटा केरोसिन का इस्तेमाल?
केरोसिन काफी किफायती था, लेकिन दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की तरह इससे भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता था। ऐसे में जब सरकार ने क्लीन एनर्जी को बढ़ावा दिया, तो उसकी पहली मार केरोसिन पर पड़ी। लोग खाना पकाने के लिए केरोसिन से अधिक गैस सिलेंडर को तरजीह देने लगे।केरोसिन का उजाला देने वाले लालटेन, पेट्रोमैक्स या फिर सामान्य दीये में भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल था। लेकिन, सरकार ने घर-घर बिजली पहुंचाने वाली योजना चलाई। इमरजेंसी लाइट, इनवर्टर और सोलर पैनल जैसे वैकल्पिक उपायों का भी चलन बढ़ा। इससे लोगों की केरोसिन पर निर्भरता ना के बराबर हो गई।
सब्सिडी खत्म होने से सबसे तगड़ी चोट
केरोसिन के ताबूत में आखिरी कील थी उस पर मिलने वाली सब्सिडी का खत्म होना। सरकार ने 2019 में राशन की दुकानों पर केरोसिन की बिक्री बंद कर दी। साथ ही इस सब्सिडी भी खत्म कर दी। इससे खुले बाजार में केरोसिन का भाव आसमान पर पहुंच गया। इसका इस्तेमाल व्यावहारिक रह ही नहीं गया। ऐसे में आम लोगों ने केरोसिन का उपयोग एकदम बंद ही कर दिया।
दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का क्या हाल है?
, सभी पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स में डीजल की खपत में हिस्सेदारी सबसे अधिक रही। 2022-23 के दौरान इसका 38.52 प्रतिशत इस्तेमाल हुआ। इसकी बड़ी वजह खेती और ट्रांसपोर्टेशन रहे। कार और बाइक के चलते पेट्रोल का उपयोग भी बढ़ा है। वहीं, प्राकृतिक गैस की खपत में समय के साथ उतार-चढ़ाव दिखा है।