पीठ ने टिप्पणी की कि अपोलो समूह द्वारा निर्मित अस्पताल को दिल्ली के पाश इलाके में केवल एक रुपये में 15 एकड़ जमीन दी गई थी, जिसे बिना नफा या नुकसान के इसे चलाना था। लेकिन इसने इसे पूरी तरह व्यावसायिक उद्यम बना दिया, जहां पर गरीब लोग शायद ही इलाज करवा सकेंआइएमसीएल के वकील ने कहा कि अस्पताल दिल्ली सरकार की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ संयुक्त उद्यम में चल रहा है और इसकी कमाई का इतना ही हिस्सा सरकार को जाता है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर दिल्ली सरकार गरीब मरीजों का ध्यान रखने की बजाए अस्पताल से मुनाफा कमा रही है, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
अस्पताल के खिलाफ कोर्ट का एक्शन
पीठ ने यह कहते हुए कि अस्पताल को 30 वर्षों के लिए पट्टे पर दी गई जमीन का करार 2023 में खत्म हो गया है, दिल्ली और केंद्र सरकार से पूछा कि क्या इसके लीज एग्रीमेंट का फिर से नवीनीकरण किया जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट आइएमसीएल की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें 22 सितंबर 2009 के दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें कहा गया था कि अस्पताल प्रशासन ने आंतरिक और वाह्य मरीजों को मुफ्त इलाज देने के समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है।
पीठ ने कहा, “हलफनामे में यह भी बताया जाए कि बीते पांच वर्षों में कितने गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज मुहैया कराया गया। अस्पताल प्रशासन जांच दल के साथ सहयोग करे और मांगे गए सभी रिकार्ड उपलब्ध कराए। पीठ ने अस्पताल प्रशासन को आवश्यकता पड़ने पर हलफनामा भरने की भी स्वतंत्रता दी और चार सप्ताह बाद इसकी सुनवाई तय की है