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Gustakhi Maaf: खत्म क्यों नहीं कर देते ईवीएम का झमेला

-दीपक रंजन दास
कांग्रेस ने ईवीएम से चुनाव की बजाय बैलट पेपर के इस्तेमाल पर जोर दिया है। कांग्रेस ने इसका एक अजीब सा फार्मूला भी दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा है कि यदि किसी भी सीट पर 384 से ज्यादा उम्मीदवार खड़े होते हैं तो चुनाव आयोग को झख मारकर वहां बैलट पेपर से चुनाव कराना होगा। यदि ईवीएम से 384 प्रत्याशियों के लिए वोटिंग कराना संभव नहीं हुआ तो बैलट पेपर से भी कैसे होगा? इतने नामों के साथ कितने पन्ने का मतपत्र बनाना होगा? उन्हें मोडऩे में कितना वक्त लगेगा? मोड़ा-मोड़ी में गलती हुई तो मतपत्र रिजेक्ट हो जाएगा। दरअसल, यह कोई हल है ही नहीं। ईवीएम जबसे आया है तभी से निशाने पर है। विशेषज्ञों की टिप्पणियां भी इसके खिलाफ आई हैं। इसलिए अब कहीं-कहीं ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन भी लगाई जाती है। अर्थात वोटर वोट डालता है और एक पर्ची भी तत्काल छप कर मशीन में गिर जाती है। अगर किसी मशीन पर उंगली उठाई गई तो इन कागज के पुर्जों की गिनती की जा सकती है। पर इस पूरी व्यवस्था पर ही लोगों का विश्वास हिला हुआ है। दरअसल, जब भी पार्टियों को लगता है कि उनकी जीत निश्चित है और नतीजा उलटा आता है तो इसका दोष किसी न किसी पर तो मढऩा होता ही है। कार्यकर्ताओं पर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करने के आरोप लगते हैं। बागी नेताओं का पार्टी से निष्कासन हो जाता है। चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लेने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं की भी झड़ाई-पोंछाई होती है। इसके साथ ही निशाने पर होता है ईवीएम। ईवीएम का उपयोग 1999 के चुनाव में प्रारंभ हुआ। इसपर जमकर आरोप लगे। विभिन्न रिपोर्टों को आधार पर अदालत को फैसला देना पड़ा। इसके बाद 2014 से विवादित स्थानों पर ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन लगाई जाने लगी। अर्थात देश धीरे-धीरे तकनीकी को अपना रहा है। देश की आबादी लगातार बढ़ रही है। मतदाताओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। चुनाव का खर्च भी बढ़ रहा है। ऐसे में इलेक्ट्रानिक्स का उपयोग एकमात्र विकल्प रह जाता है। पर परिवर्तन का यह दौर ईवीएम पर ठहर सा क्यों गया है? तकनीकी और बिग डेटा के इस युग में ईवीएम से चिपके रहना किस तरह की मजबूरी है। बायोमैट्रिक्स के साथ सभी मतदाताओं का डेटा सरकार के पास है। आधार कार्ड पर 12 अंकों का यूनिक आइडेंटिफिकेशन नम्बर भी है। क्या ऐसे पोर्टल नहीं बनाए जा सकते जिसमें आधार नंबर से लॉग इन कर लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। अगर ऐसा हो सका तो कुछ ग्रामीण इलाकों और वनांचलों को छोड़कर शेष स्थानों पर लोग अपने-अपने घर में बैठकर, नौकरी करते हुए भी मतदान कर सकते हैं। आज जितना बड़ा अमला वोटिंग सामग्री तैयार करने, उसका परिवहन करने, चुनाव दलों को ठिकानों तक पहुंचाने और फिर मतपेटियों या ईवीएम की सुरक्षा में लगता है, उससे भी आयोग को निजात मिल जाएगी।

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