_दीपक रंजन दास
दो दिन बाद राज्य की सात लोकसभा सीटों के लिए मतदान होना है। चुनावों के साथ अब मौसम के तापमान की भी बातें होने लगी हैं। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि मतदान के दिन पारा 44 पार हो सकता है। पर सिवाय घटते वनों पर रोने-पीटने के, करने को ज्यादा कुछ रह नहीं गया है। पहले गर्मियों के आरंभ तक स्कूल-कालेज की परीक्षाएं समाप्त हो जाती थीं। बच्चे गांव चले जाते थे। पर जब से मुआ सेमेस्टर सिस्टम शुरू हुआ है, स्कूल कालेज बंद करने का मौका ही नहीं मिलता। स्कूल कालेज बंद होते थे तो शहरों में बिजली की खपत भी कम हो जाती थी। बाल बच्चे गांव चले जाते थे तो घरेलू बिजली की खपत भी कम हो जाती थी। बच्चे गांव में जाकर खेलते कूदते। विस्तृत परिवार के अन्य सदस्यों से घुलना-मिलना हो जाता। शहरों में रहने वाले बच्चे भी ग्रामीण परिवेष से परिचित हो जाते। गर्मी की छुट्टियां कहानियां पढऩे, हस्तकला सीखने के भी काम आतीं। दरअसल, तब हम परिवेष के अनुसार अपनी जीवन पद्धति को ढालते थे। अंग्रेजों ने तो अपने शासनकाल में ग्रीष्मकालीन राजधानी ही अलग बसा ली थी। 1864 में अंग्रेजों ने शिमला को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया था। सरकार खुद भी सुकून से थी और सरकार से मिलने के लिए आने-जाने वाले भी सुकून महसूस करते थे। शिमला बाद में पंजाब प्रांत का और अब हिमाचल प्रदेश का प्रादेशिक मुख्यालय है। गर्मियों से बचने के लिए ब्रिटिशकालीन इमारतों की छतों को खूब ऊंचा बनाया जाता था। दीवारें भी मोटी-मोटी होती थीं। आज भी कई जिलों के मुख्य दफ्तर इन्हीं पुरानी इमारतों में हैं जहां ग्रीष्म की मार कुछ कम पड़ती है। पर अब गर्मियों का मुकाबला हम एयरकंडीशनिंग से करते हैं। एक एयरकंडीशनर भीतर जितना ठंडा करता है, बाहर उतनी ही गर्मी पैदा करता है। वैसे भी एसी कहां सबको मयस्सर है। सबको एसी सुख दे भी दें तो इतनी बिजली कहां से आएगी। अर्थात बिजली और एसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। अधिकतर बिजली ताप विद्युत संयंत्रों में बनती है। इन्हें चलाने के लिए पानी और कोयले की जरूरत पड़ती है। कोयले के लिए पेड़ काटने पड़ते हैं। हमसे ज्यादा तो मेंढक समझदार हैं। गर्मियों में मेंढक सीतनिद्रा में चले जाते हैं। मौसम अनुकूल होने पर ही वो फिर से बाहर आते हैं। मनुष्य ऐसा नहीं कर सकता। पर वह इतना तो कर ही सकता है कि इस मौसम में अपनी गतिविधियों को न्यूनतम कर ले। अब प्रतियोगिता परीक्षाओं को ही लें। मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए आज नीट यूजी की परीक्षा है। इस बार 24 लाख विद्यार्थियों ने इसके लिए आवेदन किया है। इस भीषण गर्मी में इन विद्यार्थियों को घंटों परीक्षा केन्द्र में बंद रहना पड़ता है। उनके माता-पिता बाहर नाक-मुंह ढांपे पेड़ों की छांव ढूंढते फिरते हैं। क्या इसकी तारीख नहीं बदली जा सकती? इस ढिठाई का आखिर क्या मतलब है?
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