धर्म

नवरात्र के नौ दिन कर लिया इस कवच का जाप, तो घर में नहीं बचेगी एक भी बुरी शक्ति, लौटेगी खुशहाली

हरिद्वार: साल 2024 में शारदीय नवरात्रों का आगमन 03 अक्टूबर से हो रहा हैं. नवरात्रों में शक्ति की देवी मां दुर्गा के नौ रूप की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. अपने हर कार्य में विजय प्राप्त करने के लिए देवी मां की स्तुति और उनके निमित्त व्रत, पूजा पाठ आदि करने से सफलता प्राप्त होती हैं. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए 9 दिन तक शक्ति की देवी मां दुर्गा की पूजा अर्चना की थी.वेदों पुराणों और शास्त्रों के अनुसार नवरात्रों में मां दुर्गा के निमित्त श्रद्धा, भक्ति, भाव से ‘देवी कवच’ का पाठ करना विशेष फलदाई होता है. नवरात्रों में देवी दुर्गा के ‘देवी कवच’ का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होने लगता है. ‘मार्कंडेय पुराण’ के अनुसार दुर्गा कवच (देवी कवच) दुर्गा सप्तशती का प्रमुख मंत्र है जिसको करने से विशेष फल प्राप्त होता है.देवी कवच से दूर होंगे सभी कष्ट
‘देवी कवच’ के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि नवरात्रों में देवी कवच का पाठ करना बहुत ही शुभ और विशेष फल प्रदान करने वाला है. इसके जाप करने से जीवन में आए सभी दुख, कष्ट देवी मां दूर कर देती है. शास्त्रों के अनुसार महा फलदायिनी ‘देवी कवच’ को ब्रह्मा ने ऋषि मार्कंडेय को सुनाया था. ‘देवी कवच’ में कुल 56 श्लोक हैं. ‘दुर्गा सप्तशती’ के ‘देवी कवच’ का शक्तिशाली मंत्र व्यक्ति के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करके सकारात्मक ऊर्जा के कवच के रूप में काम करता है जिससे व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है. ‘देवी कवच’ के मंत्रों में नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने की शक्ति होती है. पुराणों के अनुसार जो भी व्यक्ति पूरी आस्था, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता से शुद्ध उच्चारण में रोजाना ‘देवी कवच’ का पाठ करता है उसे सभी बुराइयों पर विजय प्राप्त हो जाती हैं.‘देवी कवच’ मंत्र
॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥मार्कण्डेय उवाचयद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥ब्रह्मोवाचअस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥३॥पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।सप्तमं कालरात्री च महागौरीति चाष्टमम्॥४॥__________________________ ॥५-५५॥लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का  जगन्नाथ डॉट कॉम व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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