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Gustakhi Maaf: गुरूजी को दिया अद्वितीय अनुपम उपहार

-दीपक रंजन दास
आम तौर पर जब शिक्षक सेवानिवृत्त होते हैं तो स्टाफ की तरफ से ही विदायी समारोह का आयोजन किया जाता है. संस्था के प्राचार्य तथा वरिष्ठ शिक्षक उनके लिए सम्मान के कुछ शब्द कहते हैं. कुछ अच्छे प्रसंगों को याद किया जाता है. पर ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो कि किसी शिक्षक की सेवानिवृत्ति से हफ्तों पूर्व उनके पूर्व छात्रों ने ह्वाट्सअप ग्रुप बना लिया हो. चंदा इकट्ठा किया हो और एक सुदीर्घ कार्ययोजना तक तैयार कर डाली हो. हम बात कर रहे हैं, राजस्थान के नागौर में पीटीआई रहे हनुमान सिंह देवड़ा की. देवड़ा 29 वर्षों तक गोगेलाव स्थित सेठ मेघराज माणकचंद बोथरा गवर्नमेंट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में पीटीआई रहे. विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा देने के साथ-साथ वे उन्हें मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाते रहे. इस ईमानदार कोशिश का ही परिणाम रहा कि विद्यार्थी कभी उन्हें भूल नहीं पाए. उनके 65 विद्यार्थी भारतीय सेना में हैं. 20 से अधिक बच्चे पुलिस सेवा में हैं. 15 से अधिक स्टूडेंट्स पीटीआई के रूप में उनकी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं. सालों-साल किसी शिक्षक को न केवल याद रखना बल्कि उनके रिटायरमेंट की तारीख को भी याद रखना एक विलक्षण घटना है. वर्तमान एवं पूर्व विद्यार्थियों ने मिलकर एक सप्ताह व्यापी कार्यक्रम तय कर रखा था. इसके लिए 400 से अधिक विद्यार्थी गोगेलाव पहुंचे. विभिन्न खेलकूद एवं शारीरिक कौशल की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. 31 जुलाई को इसके पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया. विद्यार्थियों ने जुटाई गई राशि से अपने प्रिय शिक्षक को एक लग्जरी कार भी उपहार में दी. कौन सा शिक्षक नहीं चाहेगा कि उनके विद्यार्थी भी उनसे इतना ही प्रेम करें. पर इसके लिए कुछ कोशिशें भी करनी होती हैं. विद्यार्थी केवल फीस भरने वाली एक अतिरिक्त मुण्डी नहीं है. वह एक जीता जागता युवा है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए आपके पास आया है. शिक्षक वह अकेला खुशकिस्मत इंसान है जिसे प्रतिवर्ष 200 से 250 नए ऊर्जावान बच्चे मिलते हैं. यदि वह इन बच्चों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सफल हो जाता है तो भविष्य के कई महामानवों को जन्म दे सकता है. जो इस अवसर को पहचाने या स्वीकार किये बिना ही शिक्षण के पेशे में है उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली कोई नहीं हो सकता. देवड़ा उन शिक्षकों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत हैं जो अपने विषयों को कमतर समझते हैं. जिस समाज में शारीरिक शिक्षा, नीति शिक्षा, सामाजिक शिक्षा जैसे विषय गौण मान लिये गये हों, उसका पतन तो वैसे ही निश्चित है. शिक्षक स्वयं अपने विषय पर गर्व करे तो विद्यार्थियों में भी विषय के प्रति प्रेम सृजित कर सकता है. यही देवड़ा ने किया और उनके बच्चे सफल डाक्टर, इंजीयर, सीए न सही सेना, पुलिस और शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में तो अपना योगदान दे ही रहे हैं. इस मौके पर भिलाई के खेल प्रशिक्षक राजेश पटेल की बरबस याद आ जाती है.

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