ट्रेन में रिजर्वेशन होने के बावजूद सीनियर सिटिजन पैसेंजर को सीट न देना भारतीय रेलवे को बहुत भारी पड़ा है. इस मामले में उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने रेलवे को जुर्माने के तौर पर दो लाख रुपये पीड़ित यात्री को देने का आदेश दिया है. दरअसल, बुजुर्ग ने ट्रेन में सीट का रिजर्वेशन कराया था. इसके बावजूद उन्हें लगभग 1200 किमी की यात्रा खड़े होकर करनी पड़ी.
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने इस मामले में रेलवे की लापरवाही को देखते हुए हर्जाने के तौर पर सीनियर सिटिजन को मुआवजा देने का आदेश दिया है.
पूरी तरह से रेलवे की लापरवाही’
इस मामले में उद्योग सदन स्थित उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की अध्यक्ष मोनिका श्रीवास्तव, सदस्य डॉ राजेन्द्र धर और सदस्य रश्मि बंसल की पीठ ने रेलवे पर जुर्माना लगाया है. जिसके तहत पीड़ित को 1 लाख 96 हजार रुपये मुआवजे के तौर पर देने का निर्देश दिया है. पीठ का कहना है कि ये रेलवे अधिकारियों की पूरी तरह से लापरवाही मानी जाएगी. बुजुर्ग को दी जा रही मुआवजा रकम में उनको हुई परेशानी के साथ मुकदमे की रकम भी शामिल है.
2008 का है ये मामला
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने पीड़ित बुजुर्ग की शिकायत पर रेलवे को यह हर्जाना देने का आदेश दिया है. पीड़ित ने 3 जनवरी 2008 में दरभंगा से दिल्ली की यात्रा के लिए स्लीपर क्लास की टिकट बुक कराई थी, लेकिन रिजर्वेशन के बावजूद उन्हें बर्थ नहीं दी गई. बुजुर्ग को ये यात्रा 19 फरवरी 2008 को स्लीपर सीट से करनी थी. इस दौरान रेलवे के टीटीई ने बुजुर्ग की सीट का अपग्रेडेशन कर उन्हें एसी कोच में एक सीट दी थी. हालांकि, रेलवे पीठ ये साबित करने में फेल रहा कि उन्होंने सीट अपग्रेडेशन की सूचना बुजुर्ग को दी थी.
TTE ने सीट अपग्रेड की कही थी बात
पीड़ित शख्स ने बताया कि रेलवे टीटीई ने कन्फर्म टिकट किसी और को बेच दी थी. जब उन्होंने इस बारे में टीटीई से पूछा तो उन्हें बताया गया कि स्लीपर क्लास में उनकी सीट को एसी में अपग्रेड कर दिया गया है, लेकिन जब वहां पहुंचे तो ट्रेन अधिकारियों ने उन्हें वो बर्थ भी नहीं दी. इसको लेकर बुजुर्ग का टीटीई से झगड़ा भी हुआ था. कारण उन्हें दरभंगा से दिल्ली की यात्रा खड़े-खड़े करनी पड़ी.