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बेटे को हर सवाल का जवाब रटाकर लाया कोर्ट, बंद कमरे में ले गईं जज; 1 मिनट में पकड़ लिया झूठ

जस्टिस लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. पहले वह दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त हुईं, फिर साल 1991 में उनका बतौर चीफ जस्टिस हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ट्रांसफर हो गया. अपने कार्यकाल में उन्होंने तमाम महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई की. ऐसे ही एक दिलचस्प किस्से का जिक्र वह अपनी आत्मकथा ‘घर और अदालत’ में करती हैं. लीला सेठ लिखती हैं कि शब्द और भाषा, लेखक या वकीलों का हथियार होती है, पर बचपन में इन दोनों की बहुत अहम भूमिका होती है. यह बात मुझे तब समझ में आई जब मैं एक मुकदमे की सुनवाई कर रही थी. एक बच्चे के माता-पिता एक-दूसरे से अलग हो गए थे और उसकी कस्टडी के लिए झगड़ रहे थे. पिता, बच्चे की कस्टडी की डिमांड लेकर कोर्ट आया.

जब कोर्ट में आया बच्चा
एक दिन सुनवाई के दौरान वह बच्चा भी कोर्ट आया. मैं उसे लेकर अपने चैंबर में गई ताकि यह सुनिश्चित कर सकूं कि वाकई में उसके लिए क्या उचित है. मैंने उससे पूछा, ‘तुम किसके साथ रहना चाहते हो ?’ उसने अंग्रेज़ी में जवाब दिया- ‘अपने पिता के साथ..’ ‘जब मैंने यह पूछा कि वह अपने पिता के साथ ही क्यों रहना चाहता है तो उसका कहना था, ‘क्योंकि वे मुझे बेहद प्यार करते हैं.’ मैंने कहा, ‘तुम्हारी मां तुम्हें प्यार नहीं करती हैं?” उसने चुप्पी साध ली.

सेठ लिखती हैं कि इसके बाद मैंने आगे पूछा, ‘क्या तुम्हें अपने पिता का घर पसंद है?’ जवाब था, ‘हां, हां, मैं पिता के साथ रहना चाहता हूं.” क्या तुमने अच्छी तरह सोच लिया है ?’ तो उसने कहा, ‘ हां, मैं अपने पिता को प्यार करता हूं और उनके साथ ही रहना चाहता हूं…’जज ने झट से पकड़ लिया झूठ
लीला सेठ लिखती हैं इस सवाल-जवाब के क्रम में मैंने नोटिस किया कि बच्चा काफी तनाव में नजर आ रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अचानक हिंदी में सवाल-जवाब शुरू कर दिया और उससे पूछा, ‘अच्छी तरह सोचकर बताओ कि तुम कहां रहना चाहते हो?’ तो उसने तपाक से जवाब दिया, ‘मैं अपने नाना-नानी के साथ रहना चाहता हूं. वो मुझे बहुत चाहते हैं और मैं भी उन्हें बेहद प्यार करता हूं. फिर मैं अपनी मां से भी मिल सकूंगा जो कभी-कभार वहां आती रहती है.

बच्चे ने आगे कहा, ‘मैं कई साल तक अपने नाना-नानी के साथ रहा हूं, लेकिन जब मां को दूसरे शहर में नौकरी मिल गई तो पिता मुझे अपने साथ ले आए..’ यह कहकर वह रोने लगा.

तोते की तरह रटाए थे जवाब
इसके बाद मुझे अहसास हुआ कि अब वह बच्चा अपनी सच्ची भावनाएं अभिव्यक्त कर रहा है और पहले जो कुछ भी वह अंग्रेजी में कह रहा था, वो सब उसे तोते की तरह रटाकर लाया गया था. जाहिर है कि यह जानते हुए कि हाईकोर्ट की भाषा अंग्रेज़ी है और बच्चे से अंग्रेजी में ही सवाल किए जाएंगे, उसके पिता ने उसे जवाब रटाकर भेजे थे, लेकिन उसकी मातृभाषा हिंदी में बात करते ही सच्चाई सामने आ गई. लेकिन अब उसे यह डर सता रहा था कि उसने जो कुछ भी कह दिया है उस पर उसके पिता नाराज होंगे.सेठ लिखती हैं कि मैंने उस बच्चे को दिलासा दिया और पूछा, ‘तुम अपनी मां के साथ नहीं रहना चाहते ?’ तो उसने कहा, ‘नहीं, नाना-नानी के पास क्योंकि एक वही हैं जो मुझे बहुत अच्छी तरह रखते हैं और पढ़ाते-लिखाते हैं. इसलिए मैंने यह सुनिश्चित किया कि वह अपने नाना-नानी के पास ही रहे और खुश रहे.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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