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आप रेगिस्तान के मेहमान हैं, मालिक नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया बड़ा फैसला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के मकसद से कई अहम निर्देश जारी किए हैं। इसे गोडावण के नाम से भी जाना जाता है। शीर्ष अदालत ने राजस्थान में भविष्य की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं पर कुछ प्रतिबंधों को भी मंजूरी दी है। ये निर्देश जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की दो जजों की पीठ ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से संबंधित रिट याचिकाओं का निपटारा करते हुए जारी किए। ये दोनों ही विलुप्त होने की कगार पर हैं। कोर्ट ने राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावण ( Great Indian Bustard ) को बचाने के लिए राजस्थान और गुजरात के 14,753 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बड़े सोलर पार्कों, पवन ऊर्जा परियोजनाओं और हाईटेंशन ओवरहेड बिजली लाइनों पर रोक लगाई है, ताकि गोडावण का प्राकृतिक आवास सुरक्षित रखा जा सके।

राजस्थान से लेकर गुजरात तक यह आदेश लागू

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने भूमिगत बिजली लाइनों और अन्य शमन उपायों की व्यवहार्यता की जांच के लिए पहले नियुक्त विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। निर्देशों के अनुसार, राजस्थान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए संशोधित प्राथमिकता संरक्षण क्षेत्र 14,013 वर्ग किलोमीटर होगा, जबकि गुजरात में यह 740 वर्ग किलोमीटर होगा। अदालत ने निर्देश दिया कि इन प्राथमिकता क्षेत्रों में पक्षी के इन-सीटू और एक्स-सीटू संरक्षण के लिए समिति द्वारा अनुशंसित सभी उपायों को तत्काल लागू किया जाना चाहिए। संशोधित प्राथमिकता क्षेत्रों में प्रजाति की निगरानी भी बिना किसी देरी के शुरू की जाएगी, साथ ही पक्षी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर दीर्घकालिक अध्ययन भी किए जाएंगे।इस फैसले का सबसे ज्यादा असर जैसलमेर और बाड़मेर जिलों पर पड़ेगा, जो सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के केंद्र बनते जा रहे हैं। कोर्ट ने सोलर पार्क, पवन ऊर्जा परियोजनाओं और हाईटेंशन ओवरहेड बिजली लाइनों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला पूर्व आईएएस अधिकारी और पर्यावरणविद् एमके रंजीत सिंह की याचिका पर सुनाया है।

गोडावण राजस्थान की आत्मा, सोलर कंपनियां मेहमान

दोनों जजों की बेंच ने कहा-गोडावण राजस्थान की आत्मा है। अगर यह पक्षी खत्म हुआ, तो यह हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय विफलता होगी।
कोर्ट ने जैसलमेर-बाड़मेर में काम कर रही ऊर्जा कंपनियों को भी कड़ा संदेश देते हुए कहा-कंपनियां रेगिस्तान की मालिक नहीं, बल्कि यहां मेहमान हैं। अदालत ने इन कंपनियों को अपनी CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) राशि गोडावण और पर्यावरण संरक्षण पर खर्च करने का भी निर्देश दिया है।

विलुप्त होने की कगार पर हैं गोडावण

पीठ ने बिश्नोई समुदाय और ‘गोडावण मैन’ नाम से जाने जाने वाले दिवंगत राधेश्याम बिश्नोई को श्रद्धांजलि भी अर्पित किया। राजस्थान में गोडावण की स्थिति बेहद चिंताजनक हो चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य में अब सिर्फ 150 से 175 गोडावण ही शेष बचे हैं। इनमें से अधिकांश पक्षी जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क और उससे सटे इलाकों में पाए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने गोडावण को पहले ही अति संकटग्रस्त श्रेणी (Critically Endangered) में रखा है। इसका मतलब है कि यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर है। कोर्ट ने यह फैसला 19 दिसंबर को दिया था।

गोडावण की मौत का सबसे बड़ा कारण हाईटेंशन तार

कोर्ट ने यह बात स्वीकारी कि जैसलमेर-बाड़मेर क्षेत्र में गोडावण की मौत का सबसे बड़ा कारण हाईटेंशन बिजली लाइनों से टकराव है। गोडावण जैसे बड़े पक्षी खुले रेगिस्तानी इलाकों में उड़ते समय इन तारों को देख नहीं पाते और उनसे टकराकर उनकी मौत हो जाती है। इसी गंभीर खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 33 केवी, 66 केवी और कई जगह 400 केवी तक की मौजूदा बिजली लाइनों को भूमिगत करने या दूसरी जगह शिफ्ट करने का आदेश दिया है। अदालत ने लगभग 250 किलोमीटर लंबी बिजली लाइनों को अगले दो वर्षों में भूमिगत करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अब गोडावण क्षेत्र में बिजली लाइनें बेतरतीब तरीके से नहीं बिछेंगी। संवेदनशील इलाकों में केवल निर्धारित पावर कॉरिडोर से ही ट्रांसमिशन लाइनें गुजरेंगी, ताकि पक्षियों के प्राकृतिक आवागमन में कोई बाधा न आए।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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