बिहार में राजनीतिक शतरंज बिछ गई है। अब बारी चालों की है। एनडीए ने मिथिलांचल की सभी सीटों पर पहले ही अपने प्यादों को सजा दिया।
कुछ खींचतान को छोड़ महागठबंधन के लड़ाके भी तैयार हो चुके हैं। जन सुराज पार्टी ने भी पासे फेंक दिये हैं। ऐसे में दरभंगा की अलीनगर सीट से भाजपा प्रत्याशी लोकगायिका मैथिली ठाकुर को बागियों से निपटना होगा। भितरघात का मुकाबला करना होगा।
मिथिलांचल में कहीं पिता की विरासत का सहारा होगा तो कहीं जातीय समीकरण की जोड़ तोड़ पर भरोसा। कहीं भीतरघात का भय तो कहीं खुल्लम खुला चुनौती देते बागी होंगे।
मधुबनी की झंझारपुर सीट पर उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा को पिता से मिली राजनीतिक समझ और लंबे अनुभव पर भरोसा है, तो एनडीए की परंपरागत वोट बैंक के साथ बेहतर काम का दावा।
विरोध में खड़े सीपीआइ के रामनाराण यादव को महागठबंधन के जातीय समीकरण पर विश्वास है। वहीं, फुलपरास में परिवहन मंत्री शीला मंडल के सामने कांग्रेस ने पिछली बार की तरह ब्राह्मण चेहरा नहीं दिखा।
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुबोध मंडल को उतारा। धानुक के सामने धानुक को खड़ा किया। जबकि जन सुराज ने जलेश्वर मिश्रा को ब्राह्मण चेहरा के तौर पर उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
बिस्फी से राज्यसभा सांसद डा. फैयाज अहमद ने अपने बेटे आसिफ अहमद को राजद से खड़ा किया है। इस सीट से वे दो बार खुद विधायक रहे हैं। मुस्लिम आबादी प्रभावशाली है।
ऐसे में बिस्फी में ध्रुवीकरण बड़ा फैक्टर है। भाजपा के विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल को बिहार का गिरिराज सिंह समझा जाता है। उन्हें अपने काम और पार्टी की रणनीति पर यकीन है।
बाबूबरही सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव ने अपने बेटे आलोक यादव की इंट्री जन सुराज से करायी है। लड़ाई में तीसरा कोना बनाने का प्रयास किया है। देवेंद्र यादव झंझारपुर से पांच बार सांसद रहे।
2004 में इन्हें जीत दिलाने में बाबूबरही ने बड़ी भूमिका निभाई थी। अब देखना है कि क्या पिता की पुरानी ताकत मददगार होती है या नहीं। जदयू की मीणा कामत के बाद राजद ने अरुण सिंह कुशवाहा को उतारा है।
समस्तीपुर की वारिसनगर में तीन बार के विधायक अशोक कुमार मुन्ना ने अपने इंजीनियर बेटे डा. मृणाल को उतारा है। वह जदयू के लव-कुश की राजनीति के अहम किरदार हैं।





