छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: खनन विरोधी आंदोलन हिंसक होने के बाद ग्रामीणों की सुनवाई, कहा- नहीं बेचना चाहते ज़मीन

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के तमनार ब्लॉक के 14 गांवों के हजारों स्थानीय लोग बीते कई दिनों से कोयला खदान परियोजना के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

 उनका कहना है कि वे अपनी कृषि भूमि नहीं छोड़ना चाहते, जो कई पीढ़ियों से उनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत रही है.

मालूम हो कि बीते शनिवार यह प्रदर्शन हिंसक हो गया, जहां कई वाहनों में आग लगा दी गई और पुलिस के साथ झड़पें हुईं. इस घटना के एक दिन बाद जिला प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों की परियोजना के लिए 8 दिसंबर को हुई जनसुनवाई के परिणामों को रद्द करने की प्रमुख मांग को स्वीकार कर लिया है.

इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने दावा किया था कि किसी परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी देने की प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा मानी जाने वाली जनसुनवाई अनुचित तरीके से आयोजित की गई थी.

हालांकि, जिला प्रशासन ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि सुनवाई निष्पक्ष तरीके से की गई थी और प्रभावित प्रत्येक ग्रामीण को पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा.

उधर, नीलामी के माध्यम से परियोजना प्राप्त करने वाले जिंदल समूह ने कहा कि वह समाधान खोजने के लिए स्थानीय निवासियों के साथ बातचीत जारी रखेगा.

12 दिसंबर से चल रहा था धरना

उल्लेखनीय है कि 12 दिसंबर को शुरू हुआ यह धरना प्रदर्शन शनिवार को उस समय हिंसक हो गया, जब पुलिस ने लिब्रा गांव के कोल्ड हैंडलिंग प्लांट चौक के पास सड़क पर बैठी लगभग 50 महिलाओं को हटाने की कोशिश की. ये महिलाएं खनन से संबंधित वाहनों को रोकने का प्रयास कर रही थीं.

पुलिस ने उन्हें एक-एक करके सड़क से हटाना शुरू कर दिया, जिससे ग्रामीण भड़क उठे. इसके तुरंत बाद, 4,000 से अधिक लोगों की भीड़ मौके पर जमा हो गई. भीड़ ने हिंसक होकर तीन वाहनों में आग लगा दी और पुलिसकर्मियों से उनकी झड़प हुई. पुलिस ने बताया कि इस घटना में उनके दो वरिष्ठ अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए.

बता दें कि जिस जनसुनवाई के विरोध में प्रदर्शन हुआ, वह तामनार ब्लॉक के 14 गांवों में 3,020 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली और 15 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) उत्पादन क्षमता वाली खुली और भूमिगत कोयला खदान की स्थापना के खिलाफ थी.

इसमें बुधिया, रायपारा, आमगांव, खुरुसलेंगा, धोराभाथा, लिब्रा, बिजना, मेहलोई, बागबारी, झिंकाबहाल, तिलाइपारा, समकेरा, झरना और तंगरघाट गांव शामिल हैं.

‘यह हमारी पुश्तैनी जमीन है’

अखबार से बातचीत में प्रदर्शनकारी ग्रामीणों ने कहा कि वे नहीं चाहते कि उनकी जमीन इस परियोजना के लिए अधिग्रहित की जाए.

इस संबंध में झिकाबहाल गांव की कमला पटेल ने कहा, ‘मैं एक साधारण महिला हूं. मुझे अपने बच्चों की चिंता है. अगर मैं विरोध जारी रखती हूं, तो मुझे गिरफ्तार किया जा सकता है. हमारे पास कुछ एकड़ जमीन है और पानी की कमी के कारण हम साल में एक बार धान की खेती करते हैं. हमारी मांग है कि जनसुनवाई रद्द की जाए. हम जमीन बेचना बिल्कुल नहीं चाहते.’

आमगांव के रहने वाले 42 वर्षीय मुरलीधर नायक ने बताया, ‘हमारी मांग यह है कि हम पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण खदानें बिल्कुल नहीं चाहते, क्योंकि हमारा घर अभी भी यहीं है. दूसरी बात, हम अपनी कृषि भूमि खो देंगे, और 90% से अधिक कुशल किसान इसी भूमि पर निर्भर हैं. हमारे पास आजीविका के ज्यादा विकल्प नहीं हैं; हमारे पास कोई अन्य कौशल भी नहीं है.’

उधर, जिंदल स्टील के अध्यक्ष प्रदीप टंडन ने बताया कि सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार जनसुनवाई आयोजित की गई थी, और हमने अपने विचार और प्रतिबद्धताएं दर्ज करा दी हैं. प्रभावित ग्रामीणों को एक व्यापक और उचित मुआवजा पैकेज दिया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा, ‘चूंकि खनन गतिविधियां चरणबद्ध तरीके से की जाएंगी, इसलिए अगले 30-40 वर्षों में धीरे-धीरे भूमि अधिग्रहण किया जाएगा, और हम स्थानीय निवासियों की चिंताओं को दूर करने और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य और शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए उनके साथ रचनात्मक बातचीत जारी रखेंगे.’

घटना की जांच की जाएगी: सीएम 

शनिवार की हिंसा पर प्रतिक्रिया देते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि तामनार की घटना की जांच की जाएगी और जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

इस संबंध में रविवार को जिला कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी ने विरोध प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक बुलाई.

इस बैठक के बाद उपमंडल मजिस्ट्रेट दुर्गा प्रसाद अधिकारी ने बताया कि सभी ग्राम प्रतिनिधिमंडलों के साथ प्रारंभिक स्तर की चर्चा की है और अब हमने (जनसुनवाई के परिणाम को रद्द करने की) प्रक्रिया शुरू कर दी है.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं सभी ग्रामीणों और विरोध स्थल पर उपस्थित सभी लोगों से अनुरोध और अपील करता हूं कि कृपया शांति बनाए रखें और कानून को अपने हाथ में न लें. हम आपकी सभी मांगों का सम्मान करते हैं, और इसके लिए हमने रद्द करने की प्रक्रिया के पहले चरण पर काम शुरू कर दिया है.’

Manoj Mishra

Editor in Chief

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