संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा परीक्षा 2024 में हिंदी माध्यम से तैयारी करने वाले 40 उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की है. इनमें सबसे बड़ा नाम देहरादून की अंकिता कांति का है, जिन्होंने ऑल इंडिया में 137वीं रैंक लाकर हिंदी माध्यम की टॉपर बनने का गौरव पाया है.
अंकिता की सफलता इसलिए भी खास है क्योंकि टॉप 136 रैंक तक के सभी उम्मीदवार अंग्रेजी माध्यम से हैं. उन्होंने यह साबित किया है कि अगर मेहनत सच्ची हो, तो माध्यम कोई मायने नहीं रखता.
Success Story: अंकिता की मेहनत बनी मिसाल
अंकिता कांति का बचपन संघर्षों में बीता, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनके पिता देवेश्वर कांति एक प्राइवेट कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं, जो बैंकों में कैश ले जाने वाली गाड़ियों में तैनात रहते हैं. मां ऊषा कांति एक गृहिणी हैं. तीन बहनों में सबसे बड़ी अंकिता ने न सिर्फ परिवार की जिम्मेदारी उठाई, बल्कि अपनी मेहनत और लगन से यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा पास कर घर का नाम रोशन किया. (UPSC Hindi Medium Topper 2024)
अंकिता ने देहरादून के तुंतोवाला स्थित दून मॉर्डन स्कूल से 10वीं की पढ़ाई की थी. इसके बाद 2018 में संजय पब्लिक स्कूल, कारबारी से 12वीं की परीक्षा 96.4% अंकों के साथ उत्तीर्ण कर उत्तराखंड में चौथा स्थान प्राप्त किया. उन्होंने डीबीएस कॉलेज से BSc और DAV कॉलेज से MSc (फिजिक्स) की डिग्री हासिल की. यूपीएससी की तैयारी उन्होंने नोएडा में रहकर की और इंटरव्यू भी हिंदी माध्यम में दिया.
UPSC Success Story: परिवार में भी शिक्षा का माहौल
अंकिता की छोटी बहन अंजलि कांति बैंकिंग सेवा में चयनित हो चुकी हैं और सबसे छोटी बहन अनुष्का प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद परिवार में शिक्षा को लेकर जागरूकता और समर्थन हमेशा रहा, जिसका लाभ अंकिता को मिला. (Ankita Kanti UPSC)
नोएडा में रहकर की UPSC की तैयारी
अंकिता ने यूपीएससी की तैयारी नोएडा में रहकर की. उन्होंने इंटरव्यू भी हिंदी में ही दिया. एक मॉक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे भारतीय विदेश सेवा (IFS) में जाना चाहती हैं. अंकिता के बाद हिंदी माध्यम से दूसरा बड़ा नाम है 182वीं रैंक लाने वाले रवि राज का. इस बार 40 हिंदी माध्यम के उम्मीदवार सफल हुए हैं. हालांकि यह संख्या पिछले साल से दो कम है. वर्ष 2022 में यह संख्या 54 थी.
दृष्टि आईएएस के संस्थापक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हिंदी माध्यम से आने वाले छात्रों की मेहनत काबिल-ए-तारीफ है. अंकिता जैसी छात्राएं यह दिखा रही हैं कि भाषा की दीवार अब टूट रही है.