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नवरात्रि दुर्गा अष्टमी पूजन कब 29 या 30 सितंबर ? जानें अष्टमी और नवमी पूजन की सही तारीख

शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। इस बार अष्टमी तिथि को लेकर कुछ कंफ्यूजन बना हुआ है। अष्टमी तारीख 29 और 30 सितंबर को मनाने को लेकर थोड़ा भ्रम बना है। अष्टमी पर महागौरी की पूजा होती है। कन्या पूजन अष्टमी या नवमी को किया जा सकता है। जानें नवरात्रि अष्टमी और नवमी का पूजन कब कब किया जाएगा।इस बार शारदीय नवरात्रि में एक ही तिथि दो बार होने जाने के कारण अष्टमी पूजन को लेकर कंफ्यूजन बना हुआ है। बता दें कि शारदीय नवरात्रि का आरंभ इस बार 22 सितंबर से हुई है और इस महापर्व का समापन 2 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन होगा। दरअसल, इस बार तृतीया तिथि दो दिन रहेगी। इस बार तृतीया तिथि 23 और 24 सितंबर दोनों ही दिन रहेगी। ऐसे में अष्टमी तिथि 29 या 30 सितंबर कब मनाई जाएगी। आइए विस्तार से जानते हैं अष्टमी और नवमी तिथि का पूजन कब करना शुभ रहेगाकब है अष्टमी और नवमी तिथि ?
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि का आरंभ 29 सितंबर को शाम के समय 4 बजकर 32 मिनट पर होगा और 30 सितंबर को शाम में 6 बजकर 7 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। उदय तिथि के अनुसार, अष्टमी पूजन 29 सितंबर को किया जाएगा। इस अष्टमी को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है। 30 सितंबर का शाम में बजकर 7 मिनट से नवमी तिथि का आरंभ होगा और 1 अक्टूबर को शाम में 7 बजकर 2 मिनट तक नवमी तिथि रहेगी। ऐसे में नवमी तिथि का पूजन 1 अक्टूबर को किया जाएगा। जो लोग दुर्गा अष्टमी का पूजन करते हैं वह 30 सितंबर को कन्या पूजन करें और जो लोग नवमी में कन्या पूजन करते हैं वह 1 अक्टूबर को कन्या पूजन करें।

महाअष्टमी और नवमी पर क्या करें ?

महाअष्टमी या दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा के स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। हालांकि, इस दिन ही कई लोग इस दिन हवन करके कन्या पूजन करते हैं। जिनके घर में अष्टमी पूजन किया जाता है वह सप्तमी के दिन उपवास रखकर अष्टमी में कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण करते हैं और जिन लोगों के घर में नवमी का पूजन होता है वह अष्टमी तिथि के दिन व्रत रखकर नवमी में ही कन्या पूजन कर लेते हैं।

अष्टमी और महाअष्टमी का महत्व ?

मान्यताओं के अनुसार, अष्टमी तिथि के दिन महागौरी का पूजन किया जाता है। माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। तपस्या का दौरान मां केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। इसके बाद वह सिर्फ वायु पीकर की तप करने लगीं। उनके कठोर तप से उन्हें महान गौरव प्राप्त हुआ। इससे उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें गंगा में स्नान करने के लिए कहां जिस समय माता गंगा में स्नान के लिए गई तब कठोर तपस्या के कारण उनका स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुई। माता इसी के साथ कौशिकी कहलाई। फिर स्नान के बाद उनका स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ तो माता का यह स्वरूप महागौरी कहलाया।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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