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*मृत्यु ऐसी जो राष्ट्र का जीवन बन जाए*
जनम कर मरने में, कहीं कोई शक नही है।
जन्म लेने वाले का, अमरता में कोई हक़ नही है।
(पर धन्य वे महापुरुष और शहीद जो आज भी अमर हैं।)
अतः
हम कुछ ऐसा करें।
भले मरें, पर अमर रहें।।
यदि जीवन का लक्ष्य, केवल मरना होता।
तो जनमते ही मर जाते, क्या कहना होता।।
ऐसा न करो कि, मरने से पहले ही मर जाओ।
ऐसा भी न हो, कि मरने से तुम डर जाओ।।
पर ऐसे मरो कि तुझपे,
जहां कुर्बान हो जाये।
तेरे यश–कीर्ति गाने को खड़े,
गीता–पुराण हो जाये ।।
जय हिंद जय हिंद, सारा हिंदुस्तान कहे।
तेरी विदाई में तिरंगा, और गुलिस्तान रहे।।
मैं भी तेरी अमरता को, नमन करने आऊंगीं।
मेरे जीवन के पुण्य पुष्प, चरणों मे चढ़ाऊंगीं।।
ऋचा चंद्राकर
ग्राम:– कौंदकेरा (महासमुंद)