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Gustakhi Maaf: इन आतंकी हमलों का मकसद क्या?

-दीपक रंजन दास
आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है, उसका कोई मजहब नहीं होता। वह अपनी कौम की बदनामी का कारण बनता है। आतंक फैलाने की अपनी कोशिशों में वह सारी हदें पार कर जाता है। पहलगाम के बैसरन में हुए पर्यटकों के कत्लेआम में भी उसका उद्देश्य स्पष्ट था। आतंकियों ने नाम पूछ-पूछ कर हिन्दुओं को मारा। चीड़ के घने पेड़ों से घिरा ‘मिनी स्विट्जरलैंडÓ के नाम से मशहूर बैसरन का घास मैदान खून से लाल हो गया। पुलवामा हमले के बाद घाटी की यह दूसरी बड़ी आतंकी वारदात थी। पर इन दोनों हमलों में एक बड़ा अंतर है। 2019 में हुआ पुलवामा हमला सेना के काफिले पर किया गया था। पर पहलगाम में किया गया हमला साफ -साफ हिन्दुओं पर किया गया हमला। सवाल उठता है कि आखिर आतंकियों का मकसद क्या है? दरअसल, मजहबी आधार पर विभाजन के बाद जब पाकिस्तान बना तो उसे मुसलमानों का देश माना गया। भारत इसके बाद भी हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों एवं अन्य मतावलंबियों का संयुक्त देश बना रहा। भारत के विकास और उसकी सफलता में इन सभी का सामूहिक योगदान भी है। चुनावी राजनीति के चलते समय-समय पर ध्रुवीकरण के प्रयास जरूर हुए पर कमोबेश भारत इन सभी का देश बना रहा। आतंकवाद का मकसद इसी भाईचारे को तोडऩा है। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पनप रहे विश्वास के रिश्ते को कमजोर करना है। बैसरन में 27 लोगों की नृशंस हत्या करने के साथ-साथ आतंकियों का मकसद देश भर में फैले हिन्दुओं और मुसलमानों का विभाजन करना था। लगता है कि अपनी इस कोशिश में वो काफी हद तक सफल भी रहे हैं। कुछ लोग, जिसमें जिम्मेदार नेता भी शामिल हैं कह कर रहे हैं कि सामान खरीदने से पहले दुकानदार का नाम पूछो। यही तो चाहते थे आतंकवादी। किसी भी देश को कमजोर करने का इससे बढिय़ा तरीका और क्या हो सकता है कि वे आपस में ही लड़ें। ऐसे समय में मुसलमान खुद सामने आए हैं। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मुसलमानों ने काली पट्टी बांध कर जुमे की नमाज अदा की। पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ नारे लगाए। साथ ही यह भी कहा कि मुसलमानों को पाकिस्तान बार्डर पर छोड़ दिया जाए तो वे यह साबित कर देंगे कि उनका मुल्क भारत है और उनकी वफा भारत के साथ है। यह एक छोटी ही सही पर महत्वपूर्ण कोशिश है। बैसरन हमले के बाद जब लोगों का आक्रोश सोशल मीडिया पर फूटा तो किसी ने उन मुसलमानों का जिक्र करना जरूरी नहीं समझा जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर हिन्दू पर्यटकों की हिफाजत की और उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया। वो आतंकियों के उन मंसूबों को ही सफल बनाने में लगे रहे जिसके तहत भारत का कौमी विभाजन करना था। इसे समझने की जरूरत है कि आतंकियों का मकसद केवल हिन्दू पर्यटकों की हत्या करना नहीं था। उनका असली मकसद भारतीय हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को तोडऩा था।

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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