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उप राष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका के बारे में ऐसा क्या कहा, जिस पर छिड़ी बहस

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने को कहा था.

उप राष्ट्रपति ने इसकी ओर इशारा करते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 एक ऐसा परमाणु मिसाइल बन गया है जो लोकतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ न्यायपालिका के पास चौबीसों घंटे मौजूद रहता है.

उन्होंने कहा कि देश में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि आप राष्ट्रपति को निर्देश दें. सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार किसने दिया है और वो किस आधार पर ऐसा कर सकता है.

संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि वो पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फ़ैसला दे सकता है चाहे वो किसी भी मामले में क्यों न हो.

लेकिन उप राष्ट्रपति ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सिर्फ संविधान की व्याख्या कर सकता है.

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा था कि लोकतंत्र में जनता की चुनी हुई सरकार सबसे अहम होती है. हर संस्था को अपनी सीमा में रह कर काम करना चाहिए. कोई भी संस्थान संविधान से ऊपर नहीं है.

उन्होंने बिलों पर फ़ैसला लेने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला देते हुए कहा था,” अदालतें राष्ट्रपति को कैसे आदेश दे सकती हैं. संविधान के आर्टिकल 142 का मतलब ये नहीं होता कि आप राष्ट्रपति को भी आदेश दे सकते हैं.”

उन्होंने कहा, ”भारत के राष्ट्रपति का पद काफी ऊंचा है. राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और उसे बचाने की शपथ लेते हैं. ये शपथ केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल लेते हैं. हाल ही में एक फ़ैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया. आख़िर हम कहां जा रहे हैं. देश में हो क्या रहा है? हमें ऐसे मामलों में बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है.”

धनखड़ ने कहा था, ”तो हमारे पास ऐसे जज हैं जो अब कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम करेंगे और एक सुपर संसद की तरह भी काम करेंगे और कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे क्योंकि इस देश का क़ानून उन पर लागू तो होता नहीं.”

”संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत न्यायपालिका के पास सिर्फ संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है. इसके लिए पांच या इससे ज्यादा जजों की ज़रूरत होती है.”

उप राष्ट्रपति ने कहा था, ”जिन जजों ने जिस तरह से राष्ट्रपति को आदेश जारी किया वो ऐसा था जैसे यही देश का कानून हो. वे संविधान की ताक़तों को भूल गए हैं. अनुच्छेद 145(3) को देखें तो जजों का वो समूह किसी मामले पर ऐसे फ़ैसले कैसे दे सकता है. ख़ास कर तब जब ऐसे मामलों पर विचार के लिए आठ में से पांच जजों की ज़रूरत होती है.”

Manoj Mishra

Editor in Chief

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