गढ़वाल: भारत में आलू का सेवन बारह महीने किया जाता है और बाजार में इसकी साल भर डिमांड रहती है. मैदानी क्षेत्र हो या उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र दोनों ही जगहों आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. ऐसे में किसानों को आलू की फसल का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. जब आलू की फसल हल्की बड़ी हो जाती है, तो इसमें अगेती झुलसा रोग का प्रकोप बढ़ जाता है. इसके चलते किसानों की आलू की फसल बर्बाद हो जाती है. इस रोग के कारण आलू की पत्तियों में धब्बे पड़ने लगते हैं और आलू का पौधा झुलस जाता है. जिससे आलू की फसल खराब हो सकती है.
सबसे पहले झुलसा रोग की पहचान पौधे की पत्तियों से होती है. अगर पौधे की पत्तियों में धब्बे पड़े हों या फिर पौधा झुलसा सा दिखाई दे, तो समझ लीजिए झुलसा रोग आलू की फसल में आ गया है. इसका उपाय समय से कर लें वर्ना भारी नुकसान हो सकता है.
इस दवा का करें छिड़काव
ईश्वर सिंह ने आगे बताया कि झुलसा रोग एक संक्रामक रोग है. यह एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है, इसलिये समय पर इसका उपचार करना जरूरी होता है. झुलसा रोग से बचाव के लिए 2 ग्राम मंगोजेप पाउडर को 1 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करना होता है. पौधे के सभी भागों में दवा का छिड़काव सही तरीके से करना होता है, ताकि पूरा पौधा झुलसा रोग से बच सके दवा का छिड़काव करते समय इन बातों का रखें ध्यान
मंगोजेप का स्प्रे करते समय किसानों को मास्क लगाना होता है. क्योंकि इसमें मौजूद हानिकारक केमिकल नाक और मुंह के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. जिससे इंसान गंभीर रूप से बीमार हो सकता है. सावधानी रखकर ही दवा का छिड़काव करें.जैविक तरीका
जैविक तरीकों में 2 मिलीग्राम नीम ऑयल को 1 लीटर पानी के साथ मिलाकर एक सप्ताह के अंतराल में छिड़काव कर सकते हैं. इससे किसान आलू की फसल को झुलसा रोग से बचा सकते हैं. आप दोनों में से किसी भी एक तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं.