भारतीय रेलवे हर दिन 20,000 से ज्यादा ट्रेनों को चलाता है और करीब 2.3 करोड़ यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाता है, जो एशिया का नंबर वन और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जब ये ट्रेनें पुरानी या अनुपयोगी हो जाती हैं, तो रेलवे इन्हें कबाड़ के रूप में बेच देता है. यही पुरानी ट्रेनें रेलवे के लिए नई कमाई का जरिया बन जाती हैं.2020 से 2024 के बीच भारतीय रेलवे ने पुराने इंजनों और कोचों को बेचकर 19,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमाई की. मिशन जीरो स्क्रैप के तहत रेलवे यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी पुराना इंजन या कोच बेकार पड़ा न रहे. इससे यार्ड खाली रहते हैं और रेलवे की आमदनी लगातार बढ़ती है.
पुराने इंजन को कबाड़ क्यों बनाया जा रहा है?
देश में तेजी से रेल लाइनों का विद्युतीकरण हो रहा है, इसलिए पुराने डीज़ल इंजन अब धीरे-धीरे हटाए जा रहे हैं. रेलवे बोर्ड ने 2020 में फैसला किया कि अब इंजनों की सेवा अवधि 36 साल से घटाकर 30 साल की जाएगी. इसी वजह से पिछले चार सालों में एक हजार से ज़्यादा इंजन स्क्रैप किए गए. इनमें ज़्यादातर पुराने ALCO लोकोमोटिव थे, जो कभी रेलवे की जान माने जाते थे.जी हां. रेलवे ने 2020 से 2024 के बीच 37,000 से ज़्यादा कोच और वैगन को सेवा से हटा दिया. इनमें से करीब 12,000 यात्री कोच थे और बाकी मालगाड़ी के वैगन. पुराने ICF कोचों की जगह अब नए और सुरक्षित LHB कोच लगाए जा रहे हैं, ताकि सफर और ज्यादा आरामदायक और सुरक्षित बन सके.
स्क्रैप में और क्या-क्या शामिल होता है?
रेलवे सिर्फ इंजन और कोच ही नहीं, बल्कि सीटें, एसी, लाइट होल्डर और दूसरी धातु की चीजें भी बेचता है. इन्हें लौह और अलाैह धातु के रूप में बांटा जाता है. पिछले चार वर्षों में रेलवे ने 62 लाख मीट्रिक टन धातु स्क्रैप बेचकर रिकॉर्ड राजस्व अर्जित किया है. कुछ पुराने कोचों को काटने से पहले रेस्टोरेंट, कैफे या हेरिटेज डिस्प्ले में बदला जाता है. बाकी बचे लोहे और धातु को पिघलाकर नई चीजें बनाई जाती हैं जैसे निर्माण सामग्री या औद्योगिक उपकरण. इस तरह रेलवे वेस्ट से वेल्थ की मिसाल पेश करता है, जहां हर पुरानी ट्रेन किसी नई कहानी की शुरुआत बन जाती है.





