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मछुआरों का एक गाँव कैसे बना दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक

मंगलवार को इसराइल ने दोहा में हमास के प्रतिनिधियों को निशाना बनाकर हमला किया था.

इसराइल और हमास के बीच क़तर की मध्यस्थता में युद्धविराम को लेकर बातचीत दोहा में चल रही थी.

इसराइल के हमले की संयुक्त राष्ट्र और क़तर समेत कई देशों ने आलोचना की थी.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि उन्हें इसराइल ने इसकी जानकारी तो दी थी, लेकिन तब तक इस “दुर्भाग्यपूर्ण हमले को रोकने के लिए काफ़ी देर हो चुकी थी.”, इस हमले के बाद यूरोपीय कमिशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा था कि इसराइल के लिए द्विपक्षीय समर्थन को “अस्थायी रूप” से रोका जा सकता है.

इस सप्ताह इसराइल के हमले के बाद स्थिति पर चर्चा के लिए क़तर अरब और इस्लामिक देशों की एक इमरजेंसी बैठक दोहा में आयोजित कर रहा है.

क़तर की सरकारी न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, दो दिन की ये बैठक इसी सप्ताह 14-15 सितंबर यानी रविवार और सोमवार को होगी.

इनमें अधिकतर आबादी खानाबदोश थी. लेकिन 1930 और 1940 के दशक में जापानी लोगों ने मोती की खेती और इसका व्यापक उत्पादन शुरू कर दिया था.

नतीजतन, क़तर की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी.

उस दौरान क़तर से लगभग 30 फ़ीसदी लोग पलायन कर गए. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक़ 1950 में यहाँ की आबादी घटकर 24 हज़ार रह गई थी.

फिर क़तर की अर्थव्यवस्था में क्रांति आई. क्रांति से ज़्यादा, ये एक जादुई खोज थी.

क़तर में दुनिया के सबसे बड़े तेल रिज़र्व का पता चला. 1950 के दशक से क़तर के ख़जाने भरने लगे और जल्द ही यहाँ के कुछ नागरिक दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में शामिल होने लगे.

आज क़तर में अनगिनत गगनचुंबी इमारतें, शानदार कृत्रिम द्वीप और अत्याधुनिक स्टेडियम हैं.

1939 में तेल की खोज

जब क़तर में तेल की खोज हुई, तब वह एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में नहीं था.

1916 से क़तर पर अंग्रेजों का नियंत्रण था. तेल का पहला भंडार 1939 में देश के पश्चिमी तट पर, दोहा से लगभग 80 किलोमीटर दूर दुखान में मिला था.

अमेरिका के बेकर इंस्टीट्यूशन में क़तर मामलों की जानकार क्रिस्टियन कोट्स कहती हैं, “यह खोज दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत में ही हुई, जिसके कारण 1949 तक तेल का निर्यात रुका रहा.”

तेल के निर्यात ने क़तर में अवसरों का अंबार लगा दिया और यहाँ तेज़ी से बदलाव होने लगे.

फलते-फूलते तेल उद्योग से आकर्षित होकर प्रवासी और निवेशक क़तर आने लगे, जिससे इसकी आबादी भी बढ़ने लगी.

1950 में क़तर की आबादी 25,000 से भी कम थी, जो 1970 तक बढ़कर एक लाख से अधिक हो गई.

इसके एक साल बाद, यानी 1971 में ब्रिटिश शासन का अंत हुआ और क़तर एक स्वतंत्र देश बन गया.

इसके साथ ही यहाँ एक नए युग की शुरुआत हुई, जिसने क़तर को और भी अधिक धनवान देश बनाया.

इसी वक़्त क़तर में एक और खोज हुई.

1971 में इंजीनियरों ने क़तर के पूर्वोत्तर तट से दूर नॉर्थ फ़ील्ड में विशाल प्राकृतिक गैस रिज़र्व की खोज की, तो बेहद कम लोग ही इसके महत्व को समझ पाए.

यह समझने में 14 साल लगे कि नॉर्थ फ़ील्ड धरती पर सबसे बड़ा नॉन-असोसिएटेड प्राकृतिक गैस क्षेत्र है. यह दुनिया के भंडार का लगभग 10 फ़ीसदी हिस्सा है.

नॉर्थ फ़ील्ड का क्षेत्रफल लगभग 6,000 वर्ग किलोमीटर है, जो पूरे क़तर के आधे हिस्से के बराबर है.

क़तर गैस दुनिया में सबसे अधिक तरल प्राकृतिक गैस का उत्पादन करती है. यह कंपनी क़तर की आर्थिक तरक्की में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

लेकिन तेल की तरह ही गैस से होने वाली आमदनी ने भी समय लिया. क्रिस्टियन कोट्स के मुताबिक़, “लंबे समय तक मांग उतनी बड़ी नहीं थी. लेकिन 80 के दशक में सब कुछ बदलना शुरू हो गया था.”

वह कहती हैं, “90 के दशक में गैस के निर्यात की व्यवस्था की गई. इसने अर्थव्यवस्था को और आगे बढ़ाया.”

क़तर की आर्थिक विकास दर के ग्राफ ने 21वीं सदी के आते ही एक बड़ी छलांग लगाई.

साल 2003 से 2004 में क़तर की जीडीपी दर 3.7 फ़ीसदी से बढ़कर 19.2 फ़ीसदी हो गई.

दो साल बाद, 2006 में यह बढ़कर 26.2 फ़ीसदी तक पहुँच गई.

यह बढ़ती जीडीपी दर कई सालों तक क़तर की ताक़त की पहचान रही. इस बढ़त को सिर्फ़ गैस के मूल्य तक सीमित नहीं किया जा सकता.

क़तर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और सस्टेनेबल इकोनॉमिक्स के जानकार मोहम्मद सईदी कहते हैं, “ये आर्थिक बदलाव ऐसे समय हो रहे थे, जब देश में राजनीतिक बदलाव भी हो रहा था. साल 1995 में वर्तमान अमीर तमीम बिन हमद अल थानी के पिता हमद बिन ख़लीफ़ा अल थानी ने सत्ता संभाली थी. यह कुछ लोगों के लिए एक विवादास्पद घटना थी कि ऐसा कैसे हुआ?”

हमद बिन ख़लीफ़ा अल थानी ने अपने पिता की जगह तब ली, जब वह स्विट्ज़रलैंड के दौरे पर थे.

अल थानी परिवार डेढ़ सौ साल से क़तर पर राज कर रहा है और इस परिवार में इस तरह सत्ता पर क़ब्ज़ा करने का यह कोई पहला वाक़या नहीं था.

लेकिन राजपरिवार की साज़िशों से इतर, जानकार मानते हैं कि सत्ता परिवर्तन से क़तर में एक बड़ा बदलाव आया.

स्पैनिश इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ़ॉरेन ट्रेड के अनुसार, “गैस और तेल को निकालने और इसे निर्यात करने में भारी निवेश किया गया. इससे इन विशाल भंडारों की परफ़ॉर्मेंस में सुधार आया और निर्यात में ख़ासा इज़ाफ़ा देखा गया.”

साल 1996 में तरल प्राकृतिक गैस से भरा एक जहाज़ जापान के लिए रवाना हुआ. यह क़तर गैस का पहला बड़ा निर्यात था और इसके अरबों डॉलर के उद्योग की शुरुआत यहीं से हुई.

2021 में क़तर में प्रति व्यक्ति जीडीपी 61,276 अमेरिकी डॉलर थी. अगर क्रय शक्ति में समानता के आधार पर देखें, तो विश्व बैंक के अनुसार यह आँकड़ा बढ़कर 93,521 डॉलर हो गया, जो दुनिया में सबसे अधिक है.

हालाँकि इसके पीछे इसकी छोटी आबादी एक बड़ी वजह है. क़तर की जनसंख्या केवल 30 लाख के आसपास है, जिसमें से अधिकांश प्रवासी हैं.

हाल के वक़्त में क़तर की अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ है और यह थोड़ी धीमी पड़ी है. भविष्य में इसके सामने पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता एक बड़ी चुनौती है.

वहीं, वर्तमान में क़तर जलवायु प्रभाव को लेकर कड़ी निगरानी झेल रहा है. क़तर उन देशों में से एक है जो सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं.

क़तर के साथ एक राजनयिक विवाद के बाद सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने 2017 से 2021 के बीच उसकी नाकाबंदी की थी.

इस नाकाबंदी का क़तर की अर्थव्यवस्था पर बहुत असर पड़ा था.

भारत के साथ रिश्ते

क़तर के साथ भारत के कूटनीतिक संबंधों की शुरुआत 1973 में हुई. इस सप्ताह दोहा में हुए इसराइली हमले की भारत ने भी आलोचना की थी.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि “इस घटना और इस क्षेत्र में इसके असर से भारत चिंतित है. इस मामले में संयम बरतते हुए कूटनीतिक रास्ते के ज़रिए इसका हल खोजा जाना चाहिए.”

इसी साल फ़रवरी में क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमद अल थानी दो दिन की आधिकारिक यात्रा पर भारत आए थे. इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी.

दोनों देशों के बीच ऊर्जा, पेट्रोकेमिकल्स, निवेश, बुनियादी ढाँचे के विकास, स्वास्थ्य और आईटी जैसे कई सेक्टर्स को लेकर द्विपक्षीय समझौते भी किए गए.

इसके एक साल पहले, 2024 में मोदी क़तर गए थे. पहलगाम हमले के बाद दोनों नेताओं के बीच फ़ोन पर बातचीत हुई थी.

दोनों के बीच व्यापार की बात करें, तो क़तर के तीन सबसे बड़े निर्यात साझेदारों में भारत शामिल है.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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