छत्तीसगढ़

जिनके भरोसे टिकट बंटे, वो भूपेश भी नहीं जीत सके; जानिए हार के 5 कारण

छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 में से सिर्फ 1 सीट कांग्रेस को मिली है। छह माह में प्रदेश में कांग्रेस की दूसरी बड़ी हार है। जिन भूपेश बघेल के भरोसे पर टिकट बांटे गए, वह खुद अपनी सीट नहीं बचा सके। चर्चा है कि इन दोनों बड़ी हार की वजह टिकट बंटवारा, हारे हुए चेहरों पर दांव और अंतर्कलह को शांत नहीं कर पाना मुख्य कारण हैं।कांग्रेस ने इस बार बड़े चेहरों को तो चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन उनमें से ज्यादातर हारे नेता थे या बाहरी। खुद भूपेश बघेल ने अपने क्षेत्र दुर्ग से बाहर जाकर राजनांदगांव से चुनाव लड़ा। ताम्रध्वज साहू को महासमुंद और देवेंद्र यादव को बिलासपुर से टिकट दिया गया।

सरकार में रहते हुए ‘घोटालों’ से जूझती रही कांग्रेस

प्रदेश में सरकार में रहते हुए भी कांग्रेस पार्टी महादेव सट्टा ऐप, कोयला घोटाला, शराब घोटाला जैसे आरोपों से जूझती रही। बीजेपी की सरकार बनाने के बाद से गोबर खरीदी घोटाला, गौठान घोटाला जैसे कई आरोप कांग्रेस पर लगे, जो लगातार इस चुनाव में चर्चा में रहे।

विधानसभा चुनाव पहले से लेकर लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस पार्टी के कई बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। सैकड़ों की संख्या में नेता बीजेपी में शामिल हुए। बीजेपी में जाने के बाद पूर्व कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी और नेताओं पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। ये भी पूरे चुनाव में चर्चा का विषय रहा।

कांग्रेस की हार की 5 वजह

1. गुटबाजी-अंतर्कलह

  • कांग्रेस की विधानसभा और लोकसभा दोनों ही चुनावों में हार की बड़ी वजह गुटबाजी और अंतर्कलह रही। भूपेश बघेल को राजनांदगांव का प्रत्याशी बनाए जाने पर कांग्रेस का एक धड़ा नाखुश रहा। उनके खिलाफ कई पत्र चर्चा में रहे, जो कांग्रेस नेताओं ने लिखे और आरोप भी लगाए। स्थानीय का मुद्दा भी हावी रहा।
  • राजनांदगांव के सीनियर कांग्रेस नेता सुरेंद्र दाऊ ने भूपेश बघेल के सामने ही मंच से खुलकर अपनी भड़ास निकली थी, उन्होंने कहा था कि 5 साल तक AC कमरों से सरकार चलती रही, कार्यकर्ताओं की पूछ परख भी नहीं हुई। दाऊ के इस वीडियो ने राष्ट्रीय स्तर तक बड़ी कंट्रोवर्सी क्रिएट की थी।
  • बिलासपुर से देवेंद्र यादव को टिकट देने को लेकर नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जगदीश कौशिक ने लगभग 2 दिनों तक बिलासपुर में कांग्रेस भवन के सामने आमरण अनशन किया था। बाहरी को टिकट देने को लेकर कौशिक ने कहा था कि मेरी तपस्या में क्या कमी रह गई थी? हालांकि बाद में देवेंद्र उनसे मिलने पहुंचे थे और अनशन खत्म करवाया था।
    • महासमुंद से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को टिकट दिया था। साहू दुर्ग संभाग से आते हैं, उनको प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर स्थानीय स्तर पर कांग्रेस नेताओं न जमकर विरोध किया था। पार्टी के सीनियर नेता इस बात को लेकर आखिर तक नाराज रहे।

    2. विधानसभा हार के बाद भी बदलाव नहीं

    • कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के बाद से ही बदलाव की चर्चा थी। कहा जा रहा था कि, एक दर्जन से ज्यादा जिला अध्यक्ष बदल सकते हैं, लेकिन कोई खास फेरबदल नहीं हुआ। कांग्रेस के भीतरी संगठनों में ही अपने नेतृत्व के प्रति विश्वास की कमी नजर आई, जिसका फायदा सीधे तौर पर भाजपा को मिला।
    • प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज विधानसभा चुनाव के कुछ दिन पहले ही नए प्रदेश अध्यक्ष बने थे, उम्मीद थी कि वो जल्द से जल्द टीम में बदलाव करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा से पहले भी बदलाव की चर्चा थी, बदलाव जरूरी भी था, लेकिन पार्टी प्रदेश स्तर पर प्रस्ताव तैयार नहीं कर पाई।
    • कई बागी नेता लगातार खुलकर पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करते रहे, पर पार्टी न तो विधानसभा के दौरान और न ही लोकसभा के दौरान कोई बड़ा एक्शन किसी नेता को लेकर लिया।

      टिकट वितरण में हुई गलती

      • कांग्रेस ने इस बार दुर्ग संभाग के ही चार नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा था। इससे क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरण के संतुलन पर असर पड़ा। कई सीटों पर तो खुलकर प्रत्याशियों के बाहरी होने का विरोध किया गया, जो कि बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा।
      • दुर्ग लोकसभा सीट से ताम्रध्वज साहू को टिकट मिलने की चर्चा थी, सियासी जानकार बताते हैं कि ताम्रध्वज को दुर्ग से टिकट मिलता तो शायद परिणाम दूसरे होते लेकिन, बघेल की पंसद को ध्यान में रखते हुए यहां से राजेंद्र साहू को टिकट दिया गया।
      • सरगुजा से शशि सिंह पर कांग्रेस पार्टी ने दांव लगाया था, चर्चा है कि वो पूर्व मंत्री टीएस सिंहदेव की पसंद थी। शशि युवा चेहरा थी, ज्यादातर पार्टी के नेता ही उन्हें नहीं जानते थे।

      4. भ्रष्टाचार का मुद्दा लगातार चर्चा में रहा

      • कांग्रेस ने प्रदेश के सबसे बड़े चेहरे भूपेश बघेल को चुनावी मैदान में तो उतारा, लेकिन उनका नाम महादेव सट्टा ऐप, कोयला और शराब घोटाले में आने के मुद्दे को बीजेपी ने खूब भुनाया। पीएससी घोटाला समेत कांग्रेस सरकार के 5 साल के कार्यकाल पर भी कई आरोप लगे।
      • विधानसभा चुनाव के दौरान बिलासपुर से कांग्रेस महापौर रामशरण यादव और पूर्व विधायक अरुण तिवारी का 4 करोड़ में टिकट खरीदी बिक्री का ऑडियो वायरल हुआ था, इस ऑडियो ने पूरी कांग्रेस को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था, हालांकि बाद में अरुण तिवारी ने इस पर प्रेस कान्फ्रेंस कर अपना पक्ष रखा था।
        • निलंबित IAS रानू साहू, तत्कालीन सीएम बघेल की उप सचिव सौम्य चौरसिया और निलंबित IAS समीर विश्नोई कोयला घोटाले मामले में जेल में है। वहीं रिटायर्ड IAS अनिल टुटेजा शराब घोटाले मामले में जेल हैं। महादेव एप को लेकर IPS अधिकारियों पर भी सवाल उठे थे।
        • विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने जो आरोप पत्र जारी किया था उसमें IAS-IPS अधिकरियों की फोटो फ्रंट पर लगाई थी।

        5. प्रचार में कमी, गारंटियों पर भरोसा नहीं

        • कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं की पूरे चुनाव में केवल 6 सभाएं हुईं। महासमुंद सीट पर तो किसी भी बड़े नेता की रैली भी नहीं हुई। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेताओं का प्रचार कमजोर रहा। कांग्रेस की गारंटियां जहां तक पहुंचीं भी, वहां भी महिलाओं, किसानों और युवाओं ने उस पर भरोसा नहीं किया।
          • विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने महिलाओं को महतारी वंदन योजना की घोषणा की, सरकार बनने के बाद तीन महीने तक महिलाओं के खाते में पैसे आए। कांग्रेस की नारी न्याय गारंटी पर महिलाओं ने विश्वास नहीं किया।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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