हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इसे भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी भी कहा जाता है। यह पर्व जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि निर्जला एकादशी के दिन जल ग्रहण करने की भी मनाही है। हालांकि, शारीरिक रूप से असक्षम साधक फल और जल ग्रहण कर सकते हैं। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को सभी एकादशियों से प्राप्त होने वाले फल के समतुल्य व्रत फल प्राप्त होता है। साथ ही साधक पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है। महाभारतकाल में गदाधारी भीम ने निर्जला एकादशी व्रत किया था। आइए, निर्जला एकादशी के बारे में सबकुछ जानते हैं-
शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों की मानें तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून को प्रातः काल 04 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 18 जून को सुबह 06 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी।
कब मनाई जाएगी निर्जला एकादशी ?
सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। इस प्रकार 18 जून को निर्जला एकादशी मनाई जाएगी। वैष्णव समाज के लोग भी 18 जून को ही निर्जला एकादशी मनाएंगे। यह पर्व गंगा दशहरा के एक या दो दिन के अंतर पर मनाया जाता है। इस दिन दुर्लभ शिव योग का निर्माण हो रहा है। शिव योग देर रात 09 बजकर 39 मिनट तक है। इसके बाद सिद्ध योग का संयोग बन रहा है।
पारण समय
साधक 19 जून को सुबह 05 बजकर 23 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 28 मिनट के मध्य स्नान-ध्यान, पूजा पाठ कर पारण कर सकते हैं। पारण यानी व्रत तोड़ने से पहले अन्न और धन का दान अवश्य करें। आप अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य कर सकते हैं।
पूजा विधि
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ब्रह्म बेला में उठें। इस समय सबसे पहले जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रणाम करें। इसके बाद दिन की शुरुआत करें। घर की अच्छे तरीके से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर घर को शुद्ध करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद पूजा गृह में पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले रंग का फूल, फल, वस्त्र आदि चीजें अर्पित करें। पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्रों का जप करें। अंत में आरती अर्चना कर सुख-समृद्धि एवं आरोग्य जीवन की कामना करें। दिन भर निर्जला उपवास रखें। संध्याकाल में आरती-अर्चना कर फलाहार करें।
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