समदड़ी (बाड़मेर)। मारवाड़ में तेज गर्मी व लू से पकने वाले कुदरती मेवों की बाहर आ गई है। खेत खलिहानों, ओरण गोचर भूमि में खड़ी खेजड़ी पर सांगरी, तो जाल के पेड़ पर पीलू की आवक हर किसी ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है। बाजारों में इनकी आवक शुरू होने पर लोग इसे खाने में उपयोग ले रहे हैं। गुणकारी होने से बाजार में इनकी मांग अधिक है। इससे मजदूर वर्ग को मजदूरी भी हाथ लग रही है।
सांगरी की बहार
कल्प वृक्ष के नाम से पहचान रखने वाली खेजड़ी, इन दिनों सांगरी से लटालूम है। बड़ी तादाद में सांगरी आने से किसान इन्हें एकत्रित करने में लगे हैं। हरी सांगरी की सब्जी बहुत स्वादिष्ट होने पर सब्जी के रूप में काम में ले रहे हैं। वहीं बाजार में बाजार में बेच रहे हैं। हरी सांगरी बाजार में पचास से सौ रुपए प्रति किलो कीमत में बिक रही है। पानी में उबाल इसे सूखा कर बेचने पर बाजार में पांच सौ से एक हजार रुपए प्रति किलो कीमत में बिकती है। इससे मजदूर वर्ग को अच्छी मजदूरी मिलती है। उल्लेखनीय है कि सांगरी को शाही सब्जियों में भी उपयोग लिया जाता है। तीज त्योहार पर घरों में कैर-सांगरी की सब्जी बनाई जाती है।
पशु-पक्षी का आहार पीलू
पीलू मनुष्यों के लिए जहां प्राकृतिक औषधि है। वहीं पशु- पक्षियों का आहार है। यह इन्हें बड़े शौक से खाते हैं। विशेषकर ऊंट, भेड़ व गाय सांगरी तो अन्य वन्य जीव, पक्षी पीलू खाते हैं। जाल के पेड़ पर पूरे दिन भर पक्षियों का कलरव रहता है।
इनका कहना है
गर्मी व लू चलने के साथ ही खेजड़ी पर सांगरी व जाल पर पीलू पक गए हैं। हरी सांगरी की सब्जी स्वादिष्ट होती है। जो इस समय रसोई घर का हिस्सा बनी हुई है। सूखी सांगरी की बाजार कीमत अच्छी होने से उन्हें रोजगार भी मिल रहा है। गर्मी में पीलू का सेवन करते हैं। ये बड़े स्वादिष्ट होते हैं।
कविता गृहिणी