CGPSC परीक्षा में जांजगीर चांपा जिले होनहार युवक रंतीदेव ने फाइनल लिस्ट में बनाई अपनी जगह और 38 रैक हासिल किया है. मध्यमवर्गीय किसान विनोद कुमार राठौर, और माता कृष्णा देवी राठौर के पुत्र रंतीदेव राठौर ने कड़ी मेहनत, संघर्ष और आत्मविश्वास के दम पर राज्य सेवा परीक्षा में 38 वीं रैंक हासिल कर नायब तहसीलदार के पद पर चयन प्राप्त किया है. किसान परिवार से आने वाले रंतीदेव की सफलता युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है.
शुरुआती शिक्षा से नौकरी तक का सफर
रंतीदेव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर, नैला-जांजगीर से प्राप्त की इसके बाद उन्होंने एनआईटी रायपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया. पढ़ाई पूरी होते ही वे जेके पेपर लिमिटेड, सूरत (गुजरात) में सीनियर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में 50 हजार रुपए प्रतिमाह की सैलरी पर कार्यरत हो गए और दो साल वहां जॉब किए लेकिन प्रशासनिक सेवा में जाने के निश्चय के साथ उन्होंने वर्ष 2022 में अपनी 50 हजार की नौकरी छोड़ दी.
नौकरी छोड़ने के बाद रंतीदेव बिलासपुर आए और तीन वर्ष लगातार तैयारी की, पहले प्रयास में उन्होंने सीमित समय में तैयारी के बावजूद प्रीलिम्स और इंटरव्यू क्लियर किया, लेकिन मेन्स के कम अंकों के कारण 217वीं रैंक पाई और पद आवंटित नहीं हो सका, दूसरे प्रयास में चंद्रा एकेडमी की टेस्ट सीरीज के तहत उन्हें अच्छा मार्गदर्शन मिला, टेस्ट सीरीज में 145वीं रैंक आई, लेकिन वह इस बार भी केवल दो अंकों से चूक गए, तीसरा प्रयास (2024) निर्णायक साबित हुआ, उन्होंने अपनी कमियों पर काम करते हुए मेन्स में 665 अंक हासिल किए और 38वीं रैंक के साथ नायब तहसीलदार पद पर चयनित हुए.तैयारी का तरीका और रणनीति
रंतीदेव बताते हैं कि वे रोजाना 8 से 10 घंटे लाइब्रेरी में अध्ययन करते थे, और करंट अफेयर्स पर विशेष ध्यान देने के लिए टेलीग्राम ग्रुप्स, यूट्यूब चैनल्स (स्टडी आईक्यू, दृष्टि IAS) का उपयोग किया और तैयारी की दौरान सोशल मीडिया फेसबुक-इंस्टाग्राम पूरी तरह डीएक्टिवेट रखे, ताकि ध्यान न भटके, रंतीदेव ने अपने इंटरव्यू का अनुभव बताया की 12 नवंबर को दोपहर शिफ्ट में हुआ, जो लगभग आधे घंटे चला, जिसमें चार सदस्यों की पैनल थे जिनके द्वारा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से जुड़े हुए, वर्तमान घटनाक्रम, प्रशासन में उनकी भूमिका, भ्रष्टाचार पर विचार जैसे विषयों पर विस्तृत इंटरव्यू कर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया.रंतीदेव बताते हैं कि नौकरी छोड़ने के बाद का समय बेहद चुनौतीपूर्ण था, पर माता-पिता, बहन और दोस्तों ने हर स्तर पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक संबल दिया, पिछले प्रयास में दो अंकों से चूकने के बाद भी परिवार ने उन्हें संभाला और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. वही तैयारी कर रहे युवाओं से कहा की “प्रतियोगी परीक्षाओं में सबसे बड़ा हथियार है धैर्य, अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें सुधारना होगा. उचित मार्गदर्शन, सही रणनीति और निरंतर दोहराव से ही सफलता मिलती है, यदि आप सही दिशा में हैं, तो आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलेगी.”




