कार्तिक पूर्णिमा की समाप्ति के साथ आज से अगहन मास आरंभ हो रहा है. पुराणों में इस महीने को श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु का स्वरूप बताया गया है. श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘मासानां मार्गशीर्षोऽहम्’ इसका अर्थ है कि “महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं”. यह श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय (विभूतियोग) में भगवान श्रीकृष्ण का कथन है. इसका मतलब है कि सभी महीनों में, मार्गशीर्ष (जिसे अगहन भी कहते हैं) भगवान कृष्ण को सबसे प्रिय है और वह स्वयं इस महीने का स्वरूप हैं. यह महीना ज्ञान, भक्ति, दान-पुण्य और साधना के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
स्कंदपुराण में दर्ज है कथा
स्कंदपुराण में इसका जिक्र आता है कि भगवान ब्रह्माजी खुद भगवान विष्णु से पूछते हैं कि आपने खुद को मार्गशीर्ष मास का स्वरूप बताया है. इसका क्या तात्पर्य है? इस महीने का क्या महत्व है, मैं आपसे जानना चाहता हूं. इस पर भगवान विष्णु कहते हैं कि ब्रह्मदेव, जो कोई पुण्य करने वाले मेरे भक्त हैं, उन्हें मार्गशीर्षमास का व्रत जरूर करना चाहिए, क्योंकि यह मेरी प्राप्ति कराने वाला है.
क्या है मार्गशीर्ष मास का महत्व
मार्गशीर्षमास मुझे सदैव प्रिय है. जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान करता है, उसपर सन्तुष्ट होकर मैं अपने-आपको भी उसे समर्पित कर देता हूं. इसका उदाहरण खुद नंदगोप जी हैं. वह पृथ्वी पर धर्मात्मा के रूप में विख्यात थे. उनके रमणीय गोकुल में कई हजारों गोपकन्या थीं.उन सभी ने भक्तिभाव से खुद को मुझे समर्पित कर दिया था. उन्होंने उस समय प्रतिदिन प्रातःकाल विधिपूर्वक स्नान ओर पूजन किया, हविष्यान्नं भोजन किया ओर अपने इष्टदेव को नमस्कार किया. इस प्रकार विधिपूर्वक मार्गशीर्ष व्रत का पालन करने से मैं उनपर बहुत प्रसन्न हुआ ओर वरदान के रूप में मैंने अपने-आपको ही उनको अर्पित कर दिया. इसलिए मैं पुत्र रूप में उन्हें प्राप्त हुआ.
संतान प्राप्ति की कामना के लिए विशेष माह
श्रीकृष्ण कहते हैं कि मार्गशीर्ष मास संतान प्राप्ति के तमाम कठिन व्रत को बहुत आसान कर देता है. इसके लिए इस मास में पहली तिथि से ही हर रोज दामोदर मंत्र का विशेष जाप करना चाहिए. शास्त्रों में उल्लेख है कि इस मास में किए गए जप, तप, ध्यान और दान का फल अन्य महीनों की अपेक्षा कई गुना अधिक होता है.
विशेषकर गीता जयंती इसी माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए इस मास को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना गया है. मार्गशीर्ष मास में भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है. इस पूजा में सरल और सात्विक नियमों का पालन करना चाहिए.
प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान कर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष दीपक जलाएं. शुद्ध वस्त्र धारण करें और मन, वचन तथा कर्म से शुद्ध रहें. श्रीकृष्ण के मनोहारी स्वरूप का ध्यान करें. उनकी प्रतिमा या चित्र के समक्ष बैठकर ध्यानपूर्वक पूजा करें. मन में उनके दिव्य गुणों और लीलाओं का स्मरण करें.
गीता पाठ का भी मिलता है लाभ
इस मास में भगवद्गीता का पाठ करना विशेष फलदायी माना गया है. गीता के किसी भी अध्याय का नियमित रूप से पाठ करें, विशेषकर गीता जयंती के दिन. इससे मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है. इसके साथ ही “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार करें. यह मंत्र श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का अचूक उपाय माना गया है और इससे मन की शांति और संतोष मिलता है.




