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ट्रंप का एक्शन… अब भारत का पनडुब्बी प्लान पर फोकस, क्यों हो रही ‘मेक इन इंडिया’ की चर्चा

भारतीय नौसेना अपनी पनडुब्बी ताकत बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चला रही है। तीन और कलवरी पनडुब्बियां बनेंगी, साथ ही प्रोजेक्ट पी-75आई पर भी काम चल रहा है। फिलीपींस ने भारत में बनी पनडुब्बियों में रुचि दिखाई है। सरकार ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा दे रही है, जिसके तहत पनडुब्बियों में 60 प्रतिशत सामान भारत में ही बनेगा।नई दिल्ली: भारतीय नौसेना अपनी पनडुब्बी क्षमता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर काम कर रही है। तीन अतिरिक्त कलवरी पनडुब्बियां और छह उन्नत पनडुब्बियों के लिए प्रोजेक्ट P-75I चल रहा है। इस बीच नई दिल्ली में स्थित सेना के मुख्यालय में ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत उपकरणों के निर्माण पर भी चर्चा हो रही है। क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है जो जिससे दोनों देशों के बीच आने वाले समय में कुछ तल्खी देखने को मिल सकती है। जबकि भारत के पनडुब्बी प्रोग्राम के लिए अमेरिकी मिसाइलों के उपयोग पर विचार किया गया हैआज के समय में भारतीय नौसेना को अपनी पनडुब्बी क्षमता को बढ़ाने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि पाकिस्तान चीन की मदद से समुद्र में लड़ने के लिए अपनी ताकत में इजाफा कर रहा है। वर्तमान में चीन की नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी और तेजी से आगे बढ़ती हुई नौसेना है। उसका पनडुब्बी का बेड़ा इस साल तक बढ़कर 65 हो जाएगा। जबकि 20235 तक यह संख्या 80 तक पहुंचने का अनुमान है।

फिलीपींस ने भारत की पनडुब्बियों में दिखाई दिलचस्पी

हाल में ही फिलीपींस के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे। दोनों देशों के बीच कई मु्द्दों पर करार हुआ है। फिलीपींस ने भारत में बनी पनडुब्बियों में दिलचस्पी दिखाई है। इसके लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) अहम भूमिका निभाएगा। जुलाई 2023 में भारत और फ्रांस ने निर्यात के लिए मुंबई और कोलकाता में पनडुब्बी और सतह पर मार करने वाले जहाजों और उनके पुर्जों के निर्माण हेतु एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया था। उस दौरान सरकार ने कहा कि इस कदम से मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि एमडीएल, नौसेना के साथ मिलकर किसी तीसरे देश के लिए स्कॉर्पीन लेवल की पनडुब्बियों का निर्माण करेगीसौदा अभी कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। वहीं, P-75I प्रोजेक्ट पर अभी बातचीत चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2023 में फ्रांस दौरे के दौरान तीन अतिरिक्त स्कॉर्पिन पनडुब्बियां बनाने की घोषणा की थी। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और मोदी ने भारत और फ्रांस में हुई मुलाकातों में इस प्रोजेक्ट पर बात की थी।प्रोजेक्ट के बारे में बताते हुए कहा कि स्कॉर्पिन पनडुब्बियां अनुबंध होने के छह साल बाद मिलेंगी। P-75I परियोजना में पहली पनडुब्बी मिलने में कम से कम 10 साल लगेंगे, क्योंकि भारत में खरीद प्रक्रिया बहुत लंबी होती है।

पनडुब्बी में लगने वाला 60 प्रतिशत सामान भारत में बनेगा

रक्षा सूत्रों का कहना है कि नई पनडुब्बियों में 60 प्रतिशत सामान भारत में बना होगा। पहले बनी छह कलवरी पनडुब्बियों में औसतन 30 प्रतिशत सामान भारत में बना था। नई स्कॉर्पिन पनडुब्बियां पहले से थोड़ी बड़ी होंगी और बेहतर काम करेंगी। इनमें भारतीय उद्योगों की भागीदारी भी ज्यादा होगी। साथ ही, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा बनाई गई टारपीडो जैसी नई तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।कलवरी पनडुब्बियों के लिए ‘मेक इन इंडिया’ के तहत मुख्य बैटरी, गैस विश्लेषक, इंटरकॉम, एसी और आरओ प्लांट और फैब्रिकेशन जैसे उपकरण भारत में बने हैं। INS वागशीर, जिसे हाल में ही भारतीय नौसेना में कमिशन किया गया है, उसमें 40 प्रतिशत सामान भारत में बना है।

कितनी है P-75I प्रोजेक्ट की लागत?

P-75I प्रोजेक्ट की लागत 43,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 70,000 करोड़ रुपये हो गई है। इसमें पहली पनडुब्बी में लगभग 45 प्रतिशत और आखिरी (छठी) पनडुब्बी में 6 प्रतिशत सामान भारत में बना होगा। इन छह आधुनिक पनडुब्बियों में लेटेस्ट सेंसर, हथियार और AIP होंगे। जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS), MDL के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम करेगी। TKMS को रक्षा मंत्रालय ने तकनीकी रूप से सही पाया है।

वहीं भारतीय नौसेना के लिए हथियारों का पैकेज भी एक चिंता का विषय बना हुआ है। अभी जर्मनी की HDW पनडुब्बियों में अमेरिका की हारपून मिसाइलें लगी हुई हैं। उम्मीद है कि P-75I के तहत बनने वाली नई पनडुब्बियों में भी हारपून मिसाइलें होंगी। हालांकि, भारतीय नौसेना ने अभी तक पनडुब्बी बनाने वाली कंपनी के साथ हथियारों का पैकेज तय नहीं किया है।

ट्रंप के कारण आ सकती है दिक्कतें

हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उठाए गए कदमों के कारण भारत ने स्वदेशी पनडुब्बी कार्यक्रम कुछ रुकावटें आ सकती है क्योंकि इसमें कुछ अमेरिकी मिसाइलों की आवश्कता हो सकती है। यही कारण है कि भारत में एक बार फिर मेक इन इंडिया को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

वहीं सूत्रों के मुताबिक, DRDO 500 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली सबमरीन-लॉन्च्ड क्रूज मिसाइल (SLCM) बना रहा है। यह मिसाइल भारतीय पनडुब्बियों में लगाई जा सकती है। एक रक्षा मंत्रालय के सूत्र ने कहा, “किसी भी नौसेना के लिए हथियारों से लेकर प्रोपल्शन सिस्टम तक, हर चीज एक जैसी होनी चाहिए।” DRDO द्वारा विकसित AIP तकनीक भारत को पनडुब्बियों का निर्यात करने में मदद करेगी, क्योंकि इसके लिए किसी तीसरे देश की अनुमति नहीं लेनी होगी।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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