छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट की जड़ी बूटियां पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन इन जड़ी बूटियों से यहां के आदिवासी इलाज कैसे करते हैं? उनकी तकनीक क्या है? जिससे कई लाईलाज बीमारियां ठीक होने का दावा किया जाता है. इसे समझाने के लिए छिंदवाड़ा की एक बेटी ने जर्मनी के एक यूनिवर्सिटी में प्रेजेंटेशन दिया है.
भारिया जनजाति के इलाज की टेक्निक पर लेक्चर
सरकारी कॉलेज चांद के प्रिंसिपल प्रोफेसर अमर सिंह ने बताया कि “प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस छिंदवाड़ा की हिन्दी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. टीकमणि पटवारी जर्मनी की हेडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के दक्षिण एशियन संस्थान में “पहाड़ियों पर उपचार भारतीय जनजातीय संस्कृति और उनकी उपचार पद्धतियां” शीर्षक से विश्व चिकित्सा नृविज्ञान के बैनर तले अपने शोध पत्र पर पातालकोट घाटी में भारिया जनजाति की उपचार तकनीक पर केंद्रित शोध पत्र पर लेक्चर दिया.
इलाज एक सामूहिक प्रक्रिया है, जो पारिस्थितिक सद्भाव, रिवाज और सन्निहित ज्ञान से जुड़ी रहती है. बीमारी की उत्पत्ति की प्रमुख वजह मानव के भावनात्मक गठन, वंश डीएनए और प्रकृति के बीच असंतुलन है. प्रो. पटवारी का नृवंशविज्ञान आधारित लेक्चर इनके अन्तःसंबंधों और व्यक्ति के स्वस्थ होने की सांस्कृतिक समझ पर केंद्रित था. प्रोफेसर टीकमणि पटवारी को मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग में अपनी साहित्यिक और जनजातीय लोकपद्धति आधारित विशिष्ट शोध के योगदान के लिए जाना जाता है.
पातालकोट के आदिवासियों के इलाज पद्धति पर रिसर्च
प्रोफेसर डॉक्टर टीकमणि पटवारी ने बताया कि “यह रिसर्च पातालकोट घाटी में भारिया आदिवासी समुदाय की उपचार पद्धतियों के उपचार को पारिस्थितिक सामंजस्य, अनुष्ठानों और सन्निहित ज्ञान पर आधारित एक समग्र प्रक्रिया के रूप समाहित करती है. बीमारी को मनुष्यों, आत्माओं, पूर्वजों और प्रकृति के बीच संतुलन में गड़बड़ी के रूप में देखा जाता है. नृवंशविज्ञान कथाएं इन अंतर्संबंधों और कल्याण की सांस्कृतिक समझ को उजागर करती हैं.
शोध क्लेनमैन, सेक्स और सोर्डस की सैद्धांतिक अंतर्दृष्टि पर आधारित है, जो व्यापक चिकित्सा नृविज्ञान संबंधी बहसों के भीतर भारिया उपचार को परिभाषित करती है. इसलिए यह रिसर्च जैव चिकित्सा प्रभुत्व को चुनौती देती है और स्वास्थ्य और सद्भाव की स्वदेशी अवधारणाओं पर गहन चिंतन को बताती है.”
जेनेटिक एक्सपीरियंस के आधार पर जड़ी बूटियों से इलाज
पातालकोट की जड़ी बूटियों से पहाड़ों में इलाज करने वाले लोगों को भुमका पढ़िहार या फिर वैद्य कहा जाता है. 70 साल की उम्र में भी पातालकोट की जड़ी बूटियों से लोगों का इलाज करने वाले भुमका सुखलालभारती ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि “पातालकोट में कई बेशकीमती जड़ी बूटियां पाई जाती हैं. जिससे कई बीमारियों का इलाज किया जाता है. उन्हें इलाज करने के लिए किसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती, बल्कि वे पुश्तैनी रूप से इस काम को करते हैं.
पहले उनके पिताजी लोगों का इलाज करते थे और उनके पिताजी ने उनके दादा से यह पद्धति सीखी थी. सुखलाल भारती ने भी अपने पिताजी से जड़ी बूटियां के बारे में जानकारी ली, फिर उन्होंने भी भी इलाज करना शुरू कर दिया. कई लोगों को स्वस्थ करने का वे दावा करते हैं.
पातालकोट में रहती है भारिया जनजाति
भारिया जनजाति सदियों से पातालकोट में रह रही है. पातालकोट के 12 गांव में 611 भारिया परिवार हैं. इसके लिए केंद्र सरकार ने भारिया जनजाति विकास प्राधिकरण का गठन किया था. जिसके माध्यम से इस जानजाति के उन्नयन के कार्य होते थे. अब जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के सिद्धांत पर पूरा पातालकोट ही भारिया जनजाति को दे दिया गया है.यह सब कुछ हैबिटेट राइट्स सेक्सन नियम -3 (1) (0) भारिया पीवीजीटी एक्ट के तहत दिया गया है. यहां के 611 परिवारों के नाम शामिल किए गए हैं. पातालकोट के 12 गांव में जदमादल, हर्रा कछार खमारपुर, सहराप जगोल, सूखा भंडार हरमऊ, घृणित, गैल डुब्बा, घटलिंगा, गुड़ी छतरी सालाढाना, कौड़िया ग्राम शामिल है.
बूटियों का खाजाना
पातालकोट अपनी दुर्लभ जड़ी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध है. यहां 200 से ज्यादा प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं. जिनमें से कुछ हिमालय में भी पाई जाती हैं. इन जड़ी-बूटियों का उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है.
पातालकोट के आदिवासी सदियों से इनका उपयोग करते आ रहे हैं. पातालकोट की जड़ी बूटियों से इलाज कराने के लिए देश-विदेश के लोग पहुंचते हैं और कई रिसर्च सेंटर भी यहां से जड़ी बूटियां को लेकर जाते हैं.