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वांग छी: चीन के पूर्व सैनिक जो अब न भारत में रुक सकते हैं और न वापस जा सकते हैं

आठ साल पहले   ने चीनी सैनिक वांग छी की कहानी दुनिया के सामने रखी थी. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद वांग छी भारत में फंस गए थे.

इस रिपोर्ट के बाद वे अपने बेटे के साथ चीन गए थे और 55 साल बाद अपने परिवार से मिले थे.

लगा कि ज़िंदगी ने एक बेहतर मोड़ ले लिया है. लेकिन क़रीब छह दशक भारत में बिताने के बाद, 85 साल के वांग छी को वीज़ा विवाद में भारत छोड़ने का नोटिस मिला है.

वीज़ा मामले में उलझे और भारत से निकाले जाने का डर झेल रहे वांग छी और उनके परिवार से 

85 वर्षीय वांग छी बीते पांच दशकों से भी अधिक समय से मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले के तिरोड़ी गांव में रहते हैं.

तिरोड़ी गांव में अपने घर के बरामदे में आम के पेड़ के नीचे बैठे कांपती आवाज़ और थकी हुई आंखों से वे पूछते हैं, “मैं 60 साल से इंडिया में हूं. क्या अब मुझे यहां से भी निकाल दिया जाएगा? मैं चाइना में नहीं हूं, मैंने अपनी ज़िंदगी के 60 साल भारत में गुज़ारे, यहां मेरे बच्चे हैं मेरा परिवार है. क्या मुझे भारत में रहने का हक़ नहीं है?”

उनकी चिंता उनके चेहरे पर साफ़ झलकती है.

उनके बेटे विष्णु वांग बताते हैं, “6 मई को हमें नोटिस मिला कि पापा का वीज़ा एक्सपायर हो गया है. अब या तो वीज़ा रिन्यू कराएं या पापा को भारत छोड़ना पड़ेगा.”

परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब है. विष्णु, जो प्राइवेट नौकरी करते हैं, कहते हैं, “10-15 हज़ार की सैलरी में पापा की दवाइयों, बच्चों की पढ़ाई और क़ानूनी ख़र्चों का प्रबंध करना बहुत मुश्किल है.

विष्णु कहते हैं, “हमारे जाति प्रमाण पत्र के लिए पूछा जाता है कि आपके पिता किस जगह के निवासी हैं और उनकी जाति क्या है? जब हमने बताया पिता जी चीन के नागरिक हैं. तो कहा गया कि चाइना से लिखवाकर लाओ आपके पिता की जाति क्या है. अब चाइना से कैसे लिखवाकर लायेंगे?”

इस मामले पर जब हमने ज़िला अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि “क़ानूनी अड़चनों के कारण जाति प्रमाण पत्र तो नहीं बन सकता है लेकिन परिवार की अन्य ज़रूरी मदद की जाएगी.”

पिछले छह दशकों में वांग छी ने भारत में अपने पैर जमाने की कोशिश की, लेकिन उनकी ज़िंदगी कभी भी पूरी तरह स्थिर नहीं हो पाई.

चीनी सैनिक से तिरोड़ी गांव के ‘राजबहादुर’ बनने तक का सफ़र उनके लिए संघर्षों से भरा रहा है.

वांग छी के मुताबिक 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान वो रास्ता भटककर भारतीय सीमा में आ गए थे. वांग छी ने बताया कि उन्होंने रेड क्रॉस की गाड़ी से मदद मांगी, लेकिन उन्हें भारतीय सेना को सौंप दिया गया. उनके मुताबिक़ उन्हें छह साल तक भारत की अलग-अलग जेलों में रखा गया.

1969 में चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने उन्हें जेल से रिहा किया, लेकिन चीन लौटने की अनुमति नहीं दी. इसके बाद उन्हें मध्य प्रदेश के तिरोड़ी गांव भेज दिया गया.

अपने घर से बाहर निहारते हुए वांग छी कहते हैं, “कभी कभी सोचता हूं एक ग़लती ने मेरी पूरी ज़िंदगी बदल दी.”

वह याद करते हैं, “मैं पहले दिल्ली जेल में रहा. वहां एक-दो महीने रखने के बाद मुझे राजस्थान जेल भेजा गया. फिर वहां से ट्रांसफर करके पंजाब की जेल में रखा गया.”

वांग छी के मुताबिक़, 1969 में उन्हें चंडीगढ़ न्यायालय ने जेल से रिहा कर दिया मगर उनके चीन जाने पर रोक होने के कारण उन्हें चंडीगढ़ से 1000 किलोमीटर दूर भोपाल और फिर वहां से लगभग 500 किलोमीटर दूर बालाघाट ज़िले के तिरोड़ी गांव भेज दिया गया.

यहीं से शुरू हुआ वांग छी से ‘राजबहादुर’ बनने का सफ़र.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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