-दीपक रंजन दास
दारू का इतिहास मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। दुनिया में बड़े-बड़े डील्स दारू पीकर ही किये जाते हैं। क्वालिटी और क्वांटिटी का फर्क हो सकता है पर दारू आज लगभग सभी पार्टियों की जरूरत बन गई है। यही दारू मगर बदनाम भी है। कहते हैं दारू पीकर लोग बर्बाद हो जाते हैं। बसी-बसाई गृहस्थियां उजड़ जाती हैं। लोग कर्जे में डूब जाते हैं। शराब का अत्यधिक सेवन करने वालों की काम करने की क्षमता कम हो जाती है। वे गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं। इसके चलते एक तरफ जहां कमाई घटती जाती है वहीं खर्चा बढ़ता चला जाता है। ऐसे लोगों के लिए एक शब्द है ‘बेवड़ाÓ। बेवड़ा सिर्फ शराब पीने के लिए ही कमाता है और पीने के लिए ही जीता है। उसे दीन दुनिया से कोई मतलब नहीं। इसलिए विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ ही राजनीतिक दल भी शराब बंदी की मांग करते हैं। मजे की बात यह है कि शराब बंदी की मांग केवल विपक्षी पार्टियां ही करती हैं। जैसे ही वो सत्ता में आते हैं, उनके सुर बदल जाते हैं। शराब घोटाले में पिछली सरकार के कई होनहार या तो जेलों में बंद हैं या फिर उनके सिर पर खतरे की तलवार लटक रही है। शराब घोटाला के चलते दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री जेल में हैं। मध्यप्रदेश में भी 42 करोड़ के आबकारी घोटाले का मामला चल रहा है। फिलहाल बात करते हैं छत्तीसगढ़ की। शराब के खिलाफ माहौल बनाकर यहां भाजपा सत्ता में आई। सत्ता में आने के बाद अब यह उसकी मजबूरी है कि वह शराब की खपत कम करके दिखाए। नई नीति कहती है कि एक व्यक्ति को एक बार में अधिकतम एक बोतल शराब ही बेची जाएगी। वह चाहे तो एक खंभा खरीद सकता है या फिर दो अद्धा या चार पव्वा। बीयर भी प्रति व्यक्ति एक ही बोतल मिलेगी। वैसे वह एक दिन में तीन बोतल शराब खऱीद सकता है पर अलग-अलग दुकान से। इसके साथ ही शराब महंगी कर दी गई है। 2022-23 में छत्तीसगढ़ में 15 हजार करोड़ रुपये की शराब बेची गई थी। सरकार को 6800 करोड़ रुपये का राजस्व भी मिला था। कोरबा जिले ने इस बार होली से पहले एक ही दिन में 4 करोड़ रुपए की शराब बेचने का रिकार्ड बनाया था। छत्तीसगढ़ को दरुहा राज्य कहा जाने लगा था। सरकार की भारी बेइज्जती हुई थी। सरकार ने दो कोशिशें की-पहला यह कि दारू की राशनिंग कर दी और दूसरा यह कि उसके दाम बढ़ा दिये। इसकी सर्वाधिक मार गरीब शराबियों पर ही पडऩे की उम्मीद है। वह तो पहले भी पव्वा-अद्धा ही खरीद पाता था। इसलिए राशनिंग का उसपर कोई प्रभाव नहीं पडऩे वाला। अलबत्ता शराब की कीमतों में वृद्धि उसे परेशान कर सकती है। वह नशे का सस्ता विकल्प तलाश सकता है। शौकीनों को तो वैसे भी दारू की कीमत से कोई फर्क नहीं पड़ता।
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