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Gustakhi Maaf: कोई डिवोर्स मांगे तो दे देना चाहिए?

-दीपक रंजन दास
सौरभ ने मुस्कान से प्रेम विवाह किया था. वह मर्चेन्ट नेवी में था इसलिए घर से लंबे-लंबे समय तक दूर रहा करता था. इस बीच मुस्कान की साहिल से दोस्ती हो गई. दोनों ही पार्टी बाज निकले. नशा और पार्टीबाजी के चलते दोनों बेपरवाह भी हो गए. मुस्कान ने सौरभ से कहा कि वह उसे डिवोर्स दे दे. पर सौरभ तैयार नहीं हुआ. फिर मुस्कान ने एक बेहतरीन जाल की रचना की. अंधविश्वासी कर्मकाण्डी साहिल को उसने उसी के हथियारों से घायल किया और सौरभ की हत्या के लिए तैयार कर लिया. दोनों ने मिलकर सौरभ की हत्या कर दी. लाश गायब करने के लिए उन्होंने उसे प्लास्टिक के ड्रम में डाल दिया और सीमेंट का घोल डालकर उसे पैक कर दिया. इसके बाद दोनों हनीमून ट्रिप पर निकल गए. वहां मुस्कान ने मंदिर में साहिल से शादी भी कर ली. पैसे खत्म होने पर दोनों लौट आए. अब लोगों का कहना है कि काश! सौरभ ने मुस्कान को डिवोर्स दे दिया होता तो आज वह जीवित होता. पर यह इतना आसान भी नहीं है. यदि पति डिवोर्स देता है तो उसे पत्नी के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी लेनी होती है. अगर बिना जिम्मेदारी के पत्नी से पीछा छुड़ाना हो तो पहले पत्नी का किसी और से अफेयर सिद्ध करना होता है. पत्नी की क्रूरता सिद्ध करना तो वैसे भी बहुत मुश्किल है. समाज के साथ-साथ सारे नियम कानून पत्नी को बेचारी मानते हैं और पति को हर बात के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है. सौरभ को मुस्कान से एक बेटी भी है. डिवोर्स के बाद बेटी का अधिकार स्वाभाविक रूप से उसकी मां को मिल जाता. शायद इसीलिए सौरभ डिवोर्स को टालता रहा. वैसे इस तरह के मामलों को विस्तार से समझने के लिए मैरिज काउंसलर्स हैं, परिवार न्यायालय हैं पर अधिकांश मामलों में पीड़ित पुरुष को न्याय नहीं मिल पाता. वैसे भी जिसका घर टूट रहा हो, उसे जीवन की परवाह ही कब होती है. अच्छा ही है कि तिल-तिल कर मरने से अच्छा उसे नींद में कत्ल हो जाने का वरदान मिल गया. दरअसल, आधुनिक सोच और समाज व्यवस्था स्त्री और पुरुष को एक दूसरे का पूरक मानती ही नहीं है. वह दोनों की बीच प्रतिद्वंद्विता चाहती है. उसे इस बात का अहसास तक नहीं है कि पिछले तीन-चार दशकों में उसने परिवार नाम की इकाई को ही तोड़ कर रख दिया है. आबादी के इस आधे हिस्से पर कब्जा जमाने के लिए राजनीतिक दांव-पेंच अब एक ऐसे मुकाम पर है जहां सीधे-सीधे रिश्वत की पेशकश की जा रही है. समाज में पुरुषों की स्थिति ड्रोन (पुरुष मधुमक्खी) जैसी हो गई है. शहद और पराग इकट्ठा करने तथा छत्ते की सुरक्षा की जिम्मेदारी भले ही नर मधुमक्खी की हो, शहद के छत्ते पर अधिकार रानी मधुमक्खी का ही होता है. रिश्तों की अहमियत और सहजता को समझे बिना सनातन की बातें बेमानी हैं.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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