-दीपक रंजन दास
ओडीशा उच्च न्यायालय ने एक 13 वर्षीय बालिका को गर्भपात की इजाजत दे दी है. अदालत ने इसके साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह इसके लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करे ताकि ऐसे मामलों में अनावश्यक विलंब न हो। गौरतलब है कि यह मामला 11 फरवरी को सामने आया था जबकि अदालत का फैसला आने में तीन सप्ताह से अधिक का वक्त लग गया। दरअसल, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट 2021 बिना उच्च न्यायालय की दखल के केवल 24 हफ्ते तक के गर्भपात की इजाजत देता है। जिस दिन बालिका की तरफ से उसके पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराई तब गर्भ को 24 हफ्ते से ज्यादा हो चुका था। जस्टिस एसके पाणिग्रही की अदालत ने इस मामले में टिप्पणी की है कि विशेष रूप से बलात्कार पीडि़ताओं के मामले में शासन को पूर्ण संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए तथा लालफीताशाही और कानूनी दांवपेंच को यथासंभव कम करना चाहिए। जैसे ही पीडि़त पुलिस स्टेशन पहुंचती है, पुलिस स्वयं उसे कानूनी सहायता उपलब्ध कराने की पहल करे क्योंकि बलात्कार के मामलों में इसका परिणाम पीडि़त को भोगना होता है। अब एसओपी यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे मामलों में पूरा सिस्टम पीडि़ता का साथ दे। ऐसे मामलों का तेजी से निपटारा हो। पीडि़त पक्ष को कानूनी और मानसिक परामर्श उपलब्ध कराया जाए तथा जहां तक संभव हो अनावश्यक विलंब को टाला जाए। इस मामले के सामने आने के बाद एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था जिसने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की कसौटी पर बालिका को परखा और यह राय दी कि जितनी जल्दी संभव हो, इस गर्भ को खत्म करने की इजाजत दे देनी चाहिए। बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि प्रेग्नेंसी से बच्ची के फिजिकल और मेंटल हेल्थ को गंभीर खतरा होगा। सरकार ने भी कहा कि बच्ची को बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इसके बाद कोर्ट ने गर्भपात की इजाजत दे दी। पीडि़त बालिका अगस्त 2024 में बलात्कार का शिकार हुई और इसके बाद भी उसके साथ कई बार संबंध बनाए गए। बालिका मानसिक रूप से कमजोर है तथा वह सिकल सेल एनीमिया से भी पीडि़त है। दरअसल, बलात्कार के मामलों में यदि पीडि़त को गर्भ ठहर गया तो उसका जीवन संकट में घिर जाता है। दोषी पकड़ा जाता है या नहीं, उसे सजा होती है या नहीं, इससे गर्भवती पीडि़ता की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि पीडि़ता किशोरावस्था की हो तो उसके जीवन को ही खतरा उत्पन्न हो जाता है। इससे पहले भी एक ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात का फैसला पलट दिया था। हाईकोर्ट ने 14 साल की इस बच्ची को गर्भपात की इजाजत दे दी थी। पर जब डाक्टरों ने इससे बच्ची के जीवन को खतरा बताया तो उसके माता पिता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जहां फैसला पलट दिया गया।
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