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Gustakhi Maaf: आस्था और विज्ञान फिर आमने-सामने

-दीपक रंजन दास
जब-जब आस्था और विज्ञान की भिड़ंत होती है, जीत आस्था की होती है. आस्था भी एक प्रकार का नशा है जिसके आगे सभी तर्क-वितर्क कुतर्क साबित होते हैं. आस्था में बड़ी शक्ति होती है. आस्थावान व्यक्ति बिना भोजन पानी या नमक के जी सकता है. आस्था हो तो पैरों से लाचार व्यक्ति पहाड़ चढ़ जाता है. कभी घर से बाहर नहीं जाने वाले लोग भी बोझा लेकर मीलों का सफर तय कर लेते हैं. आस्था का एक रूप समर्पण भी है. परिवार के प्रति समर्पण भाव रखने वाले अतिमानव हो जाते हैं. वह असाध्य कार्यों को भी साध लेते हैं. महाकुंभ के पुण्य स्नान को लेकर भी यही कहा जा सकता है. एक तिथि है जो बेहद महत्वपूर्ण है. ग्रहों के अद्भुत संयोग पर यह तिथि 144 साल में एक बार आती है. अर्थात कई पीढ़ियां इसके बारे में केवल सुन ही पाती हैं. ऐसे बहुत कम लोग 2025 के महाकुंभ में स्नान कर पा रहे हैं जिनका जन्म 1925 या उसके आसपास हुआ हो. अगला महाकुंभ 2169 में होगा. अर्थात अभी जन्म लेने वाले अधिकांश लोग तब नहीं होंगे. पिछला महाकुंभ 1881 में हुआ था. तब अविभाजित बंगाल सहित पूरे भारत की आबादी 25 करोड़ 38 लाख, 91 हजार 821 थी. इसमें जम्मू कश्मीर शामिल नहीं था. 90.9 फीसदी लोग गांवों में रहते थे. तब में और अब में बहुत फर्क है. जैसे-जैसे देश में खुशहाली आती गई और आवागमन के साधन बढ़े, कुंभ स्नानार्थियों की संख्या भी बढ़ती चली गई. 2001 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में 5 करोड़ लोग शामिल हुए थे. 12 साल बाद 2013 में ये संख्या बढ़कर 12 करोड़ हो गई. 2025 में इसके 45 करोड़ होने का अनुमान है. यह अमेरिका की आबादी से 10 करोड़ ज्यादा है. इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एक स्थान पर एक ही प्रयोजन से इकट्ठा होना अपने-आप में एक ऐतिहासिक पल है. पाप-पुण्य की बात न भी करें तो भी ऐसे मौके पर यहां उपस्थित होना और त्रिवेणी संगम पर स्नान करना अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाता है. समाज शास्त्रियों और इतिहासविदों के लिये तो ये क्षण रोमांचकारी हैं ही वैज्ञानिकों के लिए तो चिंता का विषय है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार उसने छह अलग अलग स्थानों से पानी के सैंपल लिये थे. ज्यादातर सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से कहीं अधिक पायी गयी.
संगम से लिए गए सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर पानी में 100 की बजाय 2000 निकला है. इसी तरह टोटल फीकल कोलीफॉर्म 4500 था. शास्त्री ब्रिज के पास से लिए गए सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 3200 और टोटल फीकल कोलीफॉर्म 4700 था. ये सैंपल 9 से 21 जनवरी के बीच 73 स्थानों से जुटाए गए थे पर इनकी रिपोर्ट 17 फरवरी को नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल को सौंपी गई. पहले भी सौंप देते तो मामूली जलजनित गैस्ट्रोएंटेराइटिस से लोग कहां डरने वाले थे.

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