इंदौर। विवाह विच्छेद के मामले में जैन दंपति पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू न होने संबंधी कुटुंब न्यायालय के फैसले के खिलाफ समाज एकजुट हो गया है। जैन अधिवक्ता परिषद के प्रतिनिधियों का कहना है कि हम भले ही जैन हैं, लेकिन दशकों से हमारे समाज से जुड़े वैवाहिक मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत फैसला होता आ रहा है।
वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने जैन धर्म के अनुयायियों को भले ही अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया लेकिन इसके बाद भी वैवाहिक मामलों में हजारों प्रकरण हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निराकृत हो चुके हैं। कुटुंब न्यायालय के निर्णय के बाद जैन समाज के पक्षकार असमंजस में हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके वैवाहिक विवाद आखिर किस अधिनियम के तहत निराकृत किए जाएंगे। समाज अब इस मामले में हाई कोर्ट में प्रस्तुत अपील में पक्षकार बनेगा और कुटुंब न्यायालय के निर्णय को रद करने की मांग करेगा।इंदौर कुटुंब न्यायालय ने पिछले दिनों जैन समाज के पक्षकारों की विवाह-विच्छेद की याचिकाएं यह कहते हुए निरस्त कर दी थीं कि केंद्र सरकार द्वारा जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया गया है। 27 जनवरी, 2014 को इस बारे में राजपत्र भी जारी हो चुका है। ऐसी स्थिति में जैन समाज के अनुयायियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निर्णय प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।
- वे हिंदू धर्म की मूलभूत वैदिक मान्यताओं को अस्वीकार करने वाले और स्वयं को बहुसंख्यक हिंदू समुदाय से अलग कर चुके हैं।
- बहस के दौरान पक्षकारों के वकीलों ने न्यायालय के समक्ष यह तर्क रखा भी था कि जैन समाज के वैवाहिक विवादों का निराकरण अब तक हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही होता आ रहा है।
- हिंदू विवाह अधिनियम में मुस्लिमों को छोड़कर हिंदू, सिख इत्यादि को शामिल किया गया है। वैवाहिक विवादों के निपटारे के लिए जैन समाज का कोई अपना कानून नहीं है।
- इंदौर के कुटुंब न्यायालय में वर्तमान में पांच खंडपीठ हैं। जिस न्यायालय ने यह फैसला सुनाया, उसके अलावा अन्य सभी खंडपीठ में जैन समाज के पक्षकारों के मामलों में नियमित सुनवाई हो रही है।