सीतामढ़ी : पशुपालन ऐसा कारोबार है जिसकी लागत तय नहीं है. ऐसा इसलिए कहा जाता है कि जब तक गाय-भैंस बच्चा नहीं देती है तो पशुपालक उसे सिर्फ पेट भरने के लिए ही खिलाता है. इस दौरान पशु से उत्पादन नहीं मिलता है. मतलब बच्चा देने के बाद ही गाय-भैंस दूध देना शुरू करती है तो लागत के साथ मुनाफा मिलना भी शुरू हो जाता है. लेकिन पशुपालन के दौरान कई बार ऐसे मौके आते हैं जब गाय-भैंस तय वक्त पर गर्भवती नहीं होती है. क्योंकि पशुपालकों को कुछ वजहों के चलते यही पता नहीं चल पाता है कि गाय-भैंस हीट में कब आ रही हैं और कब नहीं.एनिमल वैज्ञानिक किंकर कुमार का कहना है कि पशुपालन में अच्छा मुनाफा कमाने के लिए वक्त रहते गाय-भैंस का हीट में आना जरूरी है. क्योंकि जब तक भैंस हीट में नहीं आएगी तो वो गाभिन नहीं होगी. एक्सपर्ट के मुताबिक दो से ढाई साल की दूध ना देने वाली भैंस भी उतना ही खाती है जितना दूध देने वाली भैंस. इसलिए भैंस का वक्त से हीट में आना पशुपालक के हित में बहुत जरूरी होता है. किंकर कुमार ने बताया कि अगर वो चाहते हैं कि उनके पशुओं में बांझपन की समस्या न हो तो उन्हें सबसे पहला काम यह करना है कि वो बांझपन का इलाज कराने में देरी न करें.बांझपन जितना पुराना होगा तो उसके इलाज में उतनी ही परेशानी आएगी. इसलिए ये जरूरी है कि सही समय पर पशुओं की जांच कराएं. अगर भैंस दो से ढाई साल में हीट पर नहीं आती है तो ज्यादा से ज्यादा दो से तीन महीने ही इंतजार करें, अगर फिर भी हीट में नहीं आती है तो फौरन अपने पशु की जांच कराएं. इसी तरह से गाय के साथ है. अगर गाय डेढ़ साल में हीट पर न आए तो उसे भी दो-तीन महीने इंजार के बाद डॉक्टर से सलाह लें.उन्होंने कहा कि एक बार बच्चा देने के बाद भी गाय-भैंस में बांझपन की शिकायत आती है. इसलिए अगर गाय-भैंस एक बार बच्चा देती है तो दोबारा उसे गाभिन कराने में देरी न करें. आमतौर पर पहली ब्यात के बाद दो महीने का अंतर रखा जाता है. लेकिन कुछ पशुपालक इस अंतर को ज्यादा बढ़ा देते हैं, लेकिन सलाह दी जाती है कि पशुपालक इस अंतर को ज्यादा ना रखें. अंतर जितना ज्यादा रखा जाएगा बांझपन की परेशानी बढ़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा हो सकती है. इसलिए बांझपन को गंभीर बीमारी ना मानें, छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देते हुए बांझपन की बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है.

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