आलू एक प्रमुख नकदी फसल है. हर परिवार में यह किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है. इसमें स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन-सी और खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. अधिक उपज देने वाली किस्मों की समय से बुआई, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग, समुचित कीटनाशक, उचित जल प्रबंधन के जरिये आलू का अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ाई जा सकती है. आलू की खेती में सिंचाई का महत्वपूर्ण योगदान है.आलू की पहली सिंचाई अंकुरण के उपरांत करनी चाहिए. इसके बाद 10-12 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए. आलू की खेती लगभग पूरे भारत में की जाती है. खासतौर पर यूपी के सोनभद्र में भी किसान आलू की बड़े पैमाने पर खेती करते हैं. ऐसे में अगर सोनभद्र के किसान आलू की बुवाई करने की प्लानिंग बना रहे हैं तो उनके लिए यह अच्छी खबर है. क्योंकि कृषि विशेषज्ञ ने लोकल 18 से खास बातचीत में आलू की खेती के लिए कुछ खास टिप्स बताए हैं.आलू की बुवाई के नियम
खास बात यह है कि इसके लिए किसानों को एक हेक्टेयर में 25 से 30 क्विंटल बीज का उपयोग करना चाहिए. आलू की खेती के लिए दोमट व बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा हो, उपयुक्त रहता है. मध्य समय की किस्में-कुफरी पुखराज, कुफरी अरुण, कुफरी लालिमा, कुफरी बहार आदि को नवंबर के प्रथम सप्ताह में बोआई करने से अच्छा उत्पादन होता है. देर से बोने के लिए कुफरी बादशाह, कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा आदि की मध्य दिसंबर तक बोआई अवश्य कर देना चाहिए.तापमान का रखें ध्यान
आलू शीतकालीन फसल है. इसके जमाव व शुरू की बढ़वार के लिए 22 से 24 डिग्री सेल्सियस व कंद के विकास के लिए 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है. खेत की तैयारी के लिए तीन से चार गहरी जुताई करके मिट्टी अच्छी प्रकार से भुरभुरी बना लें व बोआई से पहले प्रति एकड़ 55 किलो यूरिया, 87 किलो डीएपी या 250 किलो सिंगल सुपर फास्फेट व 80 किलो एमओपी को मिट्टी में मिला दें. बुआई के 30 दिन बाद 45 किलो यूरिया खेत में डालें.इन बातों का भी रखें ध्यान
शीतगृह से आलू निकालकर सात-आठ दिन छाया में रखने के बाद ही बोआई करें. यदि बड़े आलू हो तो उन्हें काटकर बोआई करें. लेकिन प्रत्येक टुकड़े का वजन 35-40 ग्राम के करीब रहे. प्रत्येक टुकड़े में कम से कम 2 स्वस्थ आंखें हो. इस प्रकार प्रति एकड़ के लिए 10 से 12 क्विंटल कंद की आवश्यकता होगी. बोआई से पहले कंद को तीन प्रतिशत बोरिक एसिड या पेंसीकुरान (मानसेरिन), 250मिली/आठ क्विंटल कंद या पेनफ्लूफेन (इमेस्टो), 100 मिली/10 क्विंटल कंद की दर से बीज का उपचार करके ही बुवाई करें.बोआई के समय खेत में पर्याप्त नमी रखें. एक पंक्ति की दूसरी पंक्ति 50 से 60 सेमी की दूरी पर रखें. कंद से कंद 15 सेमी की दूरी पर बोए. इस संबंध में प्रभारी कृषि अधिकारी त्रिभुवन ने बताया कि सोनभद्र की मिट्टी में आलू उगाने के लिए सबसे पहले रोटा कल्टीवेटर से खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना देना चाहिए. इसके साथ ही आलू की बुवाई से पहले उसके बीज का बेहतर शोधन किया जाना आवश्यक है.

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