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छठे के तीसरे दिन क्यों देते हैं डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य,जानिए

  • छठ पर्व के तीसरे दिन शाम के समय अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन के समस्त दुखों- कष्टों से छुटकारा मिलता है और सभी मनोकामना पूरी करती है।चार दिवसीय छठ पर्व छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा-आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। नहाय-खाय से आस्था के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। 06 नवंबर को खरना है। छठ के तीसरे दिन 07 नवंबर को संध्या काल में अस्त होते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा और छठ के चौथे दिन 08 नवंबर 2024 को उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य को जल अर्घ्य देना शुभ माना गया है, छठ के तीसरे दिन यानी कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है। आइए जानते हैं छठ पूजा में डूबते हुए सूर्य को क्यों अर्घ्य दिया जाता है?

    डूबते हुए सूर्य को क्यों अर्घ्य दिया जाता है?

    छठ पर्व में छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा-आराधना का विशेष महत्व है। छठ के तीसरे दिन किसी तालाब या नदी में खड़े होकर शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि इस समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं। प्रत्यूषा को शाम के समय की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि शाम को सूर्य देव को अर्घ्य देने से जीवन की हर कठिनाई दूर होती है और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देना प्रतीकात्मक रूप से व्यक्ति के मेहनत और तपस्या के फल प्राप्ति के समय को दर्शाता है। यह नवजीवन के शुरुआत का संकेत देता है। सूर्य के अस्त होते समय प्रत्यूषा का प्रभाव बढ़ता है। इसलिए डूबते हुए सूर्य की पूजा करने व्यक्ति के जीवन से अंधकार मिट जाता है

    डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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