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लोगों को साल भर रहता है इस सब्जी का इंतजार, सूखने के बाद 200 गुना बढ़ जाती है इसकी कीमत, कई बीमारियों में रामबाण

बीकानेर. आपने कभी न कभी टिंडसी की सब्जी खाई होगी, लेकिन कभी आपने टिंडसी को सुखाकर फिर सब्जी खाई है. अगर नहीं तो आज हम आपको राजस्थान के बीकानेर में ले जाते है और वहां टिंडसी को काटकर सूखाया जाता है और फिर इसकी सब्जी को बनाकर खाया जाता है. सुनने में भले अजीब लगेगा लेकिन यह सच है यहां कई हरी सब्जियों को सुखाकर खाया जाता है. ऐसे में लोग हरी सब्जी यानी फ्रेश सब्जी तो खाते ही है फिर इन फ्रेश सब्जियों को काटकर तेज धूप में सुखाया जाता है. इसके बाद उन्हें खाया जाता है. ऐसे में इस हरी सब्जी का भाव भी सूखने के बाद 200 गुना बढ़ जाता है और इसका नाम टिंडसी से नाम बदलकर फोफलिया कहा जाता है.बाजार में अभी फोफलिया 800 रुपए किलो बेची जा रही है. यह हरी सब्जी टिंडसी की होती है जो सूखने के बाद फोफलिया हो जाती है. यह टिंडसी को काटकर सुखाकर बनाई जाती है. यह दो से तीन दिन में पूरी तरह सूख जाती है. गावों में इस सब्जी की डिमांड बहुत ज्यादा रहती है. यह सर्दी आने के साथ ही यह खाई जाती है. इस सूखी सब्जी को लोग बाजरे की रोटी के साथ खाते है. यह दिवाली के पहले शुरू होती है मार्च तक आती है. बीकानेर व आस-पास के इलाकों के पेड़ों में यह सूखी सब्जियां लोग तोड़कर शहर में बेचते है. इन सभी सब्जियों में सभी तरह के पोषक तत्व रहते है. जिससे शरीर में कई बीमारियां दूर रहती है. आमतौर पर कई लोग अच्छा मुनाफा के लिए केमिकल युक्त सब्जियां बेचते है, लेकिन यह सूखी सब्जियां प्राकृतिक रूप से सीजन के अनुसार मिलती है. इन सूखी सब्जियों को लोग आज भी बाजरे की रोटी के साथ खाते है. इन राजस्थानी सब्जियों को देसी और शाही सब्जी भी कहते है.सूखी सब्जियों को खाने के फायदे
थार रेगिस्तान में पानी की कमी होने की वजह से यहां के लोग पेड़ और पौधों पर उगने वाली सूखी सब्जियों पर आज भी निर्भर है. हालांकि, राजस्थान के थार रेगिस्तान में पानी तो बढ़ गया है, लेकिन यहां के लोग आज भी पूरे साल सूखी सब्जियां खाते है. इन सूखी सब्जियों को खाने से कई तरह के फायदे होते हैं. बीकानेर सहित आस पास के इलाकों में कंटीले पेड़ पर यह सब्जियां सीजन के अनुसार उगती रहती हैं और लोग इन सब्जियों का स्टॉक भी करते रहते हैं. बीकानेर में करीब 10 से 12 सूखी सब्जियां मिल जाती है. यह सब्जियां कई-कई माह तक खराब भी नहीं होती हैं.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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