मधुबनी : कहते हैं इंसान का किसी पर भरोसा हो या ना हो ईश्वर पर भरोसा हो तो कामयाबी जरूर मिलती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिला है मधुबनी के इस गांव में. जहां वर्ष 2004 में कमाने के लिए घर से निकला लड़का अपनी फैमिली से अगले 20 वर्षों तक कोई संपर्क में नहीं रहा. मां मंदिरों का दौरा लगाती रही, पिता थाना पुलिस घूमते रहे. भाई इधर-उधर भटकता रहा, गांव वाले भी हैरान परेशान रहे. वहीं लड़के का कोई सुराग नहीं मिल पाया, लेकिन जब 20 वर्ष के बाद वह अपने घर लौटा तो घरवालों की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. मां की मन्नतें पूरी हो गई, भाई को भाई मिल गया. पिता की आत्मा भी तृप्त हो गई. ये कोई फिल्म नहीं था ना ही कोई ड्रामेटिक सीन. ये सब रियल है, इसके सारे कैरेक्टर रियल लाइफ के ही हैं.मधुबनी से बाबूबरही फिर खुटौना और उसके बाद सिद्धपा नाम का छोटा सा गांव. जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर जब हम इस गांव में पहुंचे तो यहां बच्चे बच्चे की जुबान पर जीवछ मंडल का नाम था. वही जीवछ मंडल जो 20 वर्षों बाद अपने घर लौटा था. अब लड़के से हमारा सामना हुआ. कद काठी बेहद साधारण, रंगत श्यामली, चेहरे पर शिक्षित ना होने का भाव. हमनें पूछा जीवछ आप ही हैं?उसने कहा हां. यहीं से सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ.कहां रहे इतने दिन जीवछ
शुरू की कुछ लाइनें पढ़ने के बाद आपके मन में भी यही सवाल आ रहा होगा कि आखिर 20 वर्षों तक यह लड़का कहां था. हमनें भी पहला सवाल यही पूछा. जवाब आया कि मैं तो मजदूरी कर रहा था. हमारा अगला सवाल था कहां, कैसे और कबसे? जवाब मिला…वर्ष 2004 में मैं घर से निकला था, उस समय मेरी उम्र महज 15 साल की थी. आर्थिक तंगी थी इसलिए रुपए पैसे भी नहीं थे और शिक्षा भी पूरी नहीं की.घर की तंगी दूर करने के लिए मैं सबसे पहले अमृतसर गया.हमनें उसे टोका, क्या वहां आपके कोई रिश्तेदार थे? उसने बताया नहीं. किसी ने कहा था कि काम के सिलसिले में अमृतसर अच्छी जगह है. वहां कुछ काम ढूंढा लेकिन मिला नही. फिर अगले कुछ दिनों में चंडीगढ़ पहुंच गया. वहां एक झूले वाले के संपर्क में आया, मजदूरी की, लेकिन पैसे नहीं मिलते थे, वहां सिर्फ खाना मिलता था. इसी दौरान एक बार हाथ भी टूट गया लेकिन मालिक ने इलाज करा दिया.
सवाल कौंधा कि इतने दिनों में घर से संपर्क साधने की कोई कोशिश नहीं की? जवाब आया, कोशिश की. लेकिन उस वक्त ना मेरे पास पैसे थे ना ही किसी का पता. घर जा सकता था, पर घर से कमाने निकला था. ऐसे में बगैर पैसे के जाना अच्छा नही लगा. जीवछ आगे बताते हैं कि अब पंजाब में अपनी दाल गलने वाली थी नहीं. लिहाजा, हिमाचल जाने का प्लान बनाया. पांच, छह वर्ष पहले हिमाचल पहुंचा. वहां एक होटल में मजदूरी मिल गई. वहीं रहने लगा, कुछ दोस्त बनें बातें हुई तो उनसे अपनी कहानी भी बताई. फिर लॉकडाउन का समय आया, सब अपने अपने घर जा रहे थे. मैं भी जाना चाहता था लेकिन डॉक्यूमेंट का अभाव था ऐसी परिस्थिति में चाह कर भी नहीं जा पाया.
मां की खुशी देखते ही बनती है
मां खुश है कि इतने वर्षों बाद उनका बेटा लौट आया है. अब वो अगले कई दिनों तक अपने जिगर के टुकड़े को संभाल कर रखना चाहती है. वो कहती हैं कि अभी तो मैं किसी भी कीमत पर इसे नहीं जाने दूंगी. पहले ब्याह कराऊंगी फिर जाने दूंगी. जीवछ की मां गीता देवी बताती है की आसपास का कोई मन्दिर नहीं है जहां मैंने मन्नत (कोबला) नहीं की. हर जगह मन्नत मांगी, सोने ( गोल्ड) का नथ भी माता रानी के दरबार में चढ़ाना है.
वहीं गांव वाले भी खुश हैं, गांव वाले ब्याह की बात पर हंसने लगते हैं दबी आवाज में बताते हैं कि इसकी शादी तो पहले ही हो चुकी है. हमनें पूछा वो कैसे तो उन लोगों ने बताया कि पहले बालविवाह होता था, उसी समय रिश्ता पक्का हो गया था लेकिन लड़के के गायब हो जाने के बाद रिश्ता भी टूटा और लड़की भी हाथ से गई. इसके बाद गांव वाले हंसने लगते हैं.
7 दिन पहले ही गांव पहुंचे हैं जीवछ
अभी बीते सप्ताह जीवछ अपने हिमाचल के मित्र सतपाल के साथ गांव आए हैं. यहां वो अपने समय के सभी लोगों को जानते हैं. लेकिन आज के समय में चीजें बदली हुई दिखाई देती है. यहां की सड़कें, यहां के लोग, उनके बचपन और वो सुहाने दिन. फिलहाल वो 35 वर्ष के हो गए हैं. अब शादी की तैयारी है, इसके बाद वो फिर हिमाचल लौट जायेंगे.