धर्म

भगवान शिव के मनभावन *श्रावणमास* में प्राय: सर्वत्र रुद्राभिषेक या रुद्री पाठ होता है,भक्तगण शिवलिंग पर रुद्राध्यायी के मन्त्रों से दूध या जल का अभिषेक करते हैं!

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भगवान शिव के मनभावन *श्रावणमास* में प्राय: सर्वत्र रुद्राभिषेक या रुद्री पाठ होता है,भक्तगण शिवलिंग पर रुद्राध्यायी के मन्त्रों से दूध या जल का अभिषेक करते हैं! *परन्तु अधिकांश लोगों को यह पता नहीं होता है किन मन्त्रों का पाठ कर रहे हैं या उनकी महिमा क्या है ?*

 

वेदों में ‘शिव’ को ही *रुद्र* कहा जाता है। क्योंकि- *रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:* अर्थात शिव सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।
वेद में विभिन्न देवों की स्तुति के *सूक्त* (मन्त्रों का समूह) दिए गए हैं ।

यजुर्वेद की *शुक्लयजुर्वेद संहिता* में आठ अध्यायों में भगवान रुद्र का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसे *‘रुद्राष्टाध्यायी’* कहते हैं । जिस प्रकार मानव शरीर में हृदय का महत्त्व है, उसी प्रकार भगवान शिव की आराधना में रुद्राष्टाध्यायी अत्यंत ही मूल्यवान है क्योंकि इसके बिना न तो रुद्राभिषेक संभव है और न ही रुद्री पाठ ही किया जा सकता है ।

*रुद्राभिषेक क्या है ?*

*अभिषेक* शब्द का शाब्दिक अर्थ है – *स्नान करना अथवा कराना।* रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा *श्रेष्ठ श्रोत्रिय वेदवित् ब्राह्मण विद्वानों* के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को *जलधाराप्रिय* माना गया है।

हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे *दु:खों* के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की *शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।* *रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।* ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

 

*मनोकामना पूर्ति के लिए विभिन्न धाराओं से रुद्राभिषेक का फल:-*

*१.* रोगों की शान्ति के लिए—कुशा लगाकर जलधारा से
*२.* पशुधन की प्राप्ति के लिए—दही की धारा से
*३.* लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए—गन्ने के रस से
*४.* जिसकी संतान जीवित न रहती हो उस दम्पत्ति को पुत्र व संतान प्राप्ति के लिए—दूध की धारा से
*५.* वंश के विस्तार के लिए—घी की धारा से
*६.* प्रमेह रोग के नाश के लिए, जड़ता दूर कर बुद्धि प्राप्ति के लिए, संतान के विवाह के लिए व मुकदमें में विजय प्राप्ति के लिए—शक्कर मिले दूध की धारा से
*७.* शत्रु नाश के लिए—चमेली के तेल की धारा से ।

*रुद्राष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं:-*

रुद्राष्टाध्यायी का प्रथम अध्याय *‘शिवसंकल्प सूक्त’* कहा जाता है । इसमें साधक का मन शुभ विचार वाला हो, ऐसी प्रार्थना की गयी है । यह अध्याय गणेशजी का माना जाता है । इस अध्याय का पहला मन्त्र श्रीगणेश का प्रसिद्ध मन्त्र है—‘गणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे निधिनां त्वा निधिपति हवामहे। वसो मम ।।’

रुद्राष्टाध्यायी का द्वितीय अध्याय भगवान विष्णु का माना जाता है । इसमें १६ मन्त्र *‘पुरुष सूक्त’* के हैं जिसके देवता विराट् पुरुष हैं । सभी देवताओं का षोडशोपचार पूजन पुरुष सूक्त के मन्त्रों से ही किया जाता है । इसी अध्याय में लक्ष्मीजी के मन्त्र भी दिए गए हैं ।

तृतीय अध्याय के देवता इन्द्र हैं । इस अध्याय को *‘अप्रतिरथ सूक्त’* कहा जाता है । इसके मन्त्रों के द्वारा इन्द्र की उपासना करने से शत्रुओं और प्रतिद्वन्द्वियों का नाश होता है ।

चौथा अध्याय *‘मैत्र सूक्त’* के नाम से जाना जाता है । इसके मन्त्रों में भगवान मित्र अर्थात् सूर्य का सुन्दर वर्णन व स्तुति की गयी है ।

*रुद्राष्टाध्यायी का प्रधान अध्याय पांचवा है । इसमें ६६ मन्त्र हैं । इसको ‘शतरुद्रिय’, ‘रुद्राध्याय’ या ‘रुद्रसूक्त’ कहते हैं ।*

शतरुद्रिय यजुर्वेद का वह अंश है, जिसमें रुद्र के सौ या उससे अधिक नाम आए हैं और उनके द्वारा रुद्रदेव की स्तुति की गयी है । रुद्राध्याय के आरम्भ में भगवान रुद्र के बहुत से नाम ‘नमो नम:’ शब्दों से बारम्बार दुहराये जाने के कारण इस भाग का नाम *‘नमकम्’* पड़ा । इसका प्रथम मन्त्र ही कितना सुन्दर है—

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नम:।
बाहुभ्यामुत ते नम: ।।

अर्थ—‘हे रुद्रदेव ! आपके क्रोध को हमारा नमस्कार है । आपके बाणों को हमारा नमस्कार है एवं आपके बाहुओं को हमारा नमस्कार है ।’

इस मन्त्र में दुष्टों के नाश के लिए रुद्र के क्रोध, बाणों और बाहुओं को नमस्कार किया गया है ।

शतरुद्रिय की महिमा को इसी बात से जाना जा सकता है कि एक बार याज्ञवल्क्य ऋषि से शिष्यों ने पूछा—‘किसके जप से अमृत तत्त्व (अमरता) की प्राप्ति होती है ?’ ऋषि ने उत्तर दिया—‘शतरुद्रिय के जप से ।’
रुद्राध्याय में वर्णित भगवान रुद्र के सभी नामों में अमृतत्व प्रदान करने की सामर्थ्य है, इसके पाठ से मनुष्य स्वयं रोगों व पापों से मुक्त होकर मृत्युंजय (अमर) हो जाता है ।

केवल रुद्राध्याय के पाठ से ही वेदपाठ के समान फल की प्राप्ति होती है । भगवान रुद्र की शतरुद्रीय उपासना से दु:खों का सब प्रकार से नाश हो जाता है । दु:खों का सर्वथा नाश ही मोक्ष कहलाता है ।

रुद्राष्टाध्यायी के छठे अध्याय को *‘महच्छिर’* कहा जाता है । इसी अध्याय में *‘महामृत्युंजय मन्त्र* का उल्लेख है—

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् । उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुत: ।।

अर्थ—इस मन्त्र में भगवान त्र्यम्बक शिवजी से प्रार्थना है कि जिस प्रकार ककड़ी का पका फल वृन्त (डाल) से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार हमें आप जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त करें । हम आपका यजन करते हैं ।

सातवें अध्याय को *‘जटा’* कहा जाता है। इस अध्याय के कुछ मन्त्र अन्त्येष्टि-संस्कार में प्रयोग किए जाते हैं ।

आठवे अध्याय को *‘चमकाध्याय’* कहा जाता है इसमें २९ मन्त्र हैं । भगवान रुद्र से अपनी मनचाही *वस्तुओं की प्रार्थना ‘च मे च मे’ अर्थात् ‘यह भी मुझे, यह भी मुझे’ शब्दों की पुनरावृत्ति के साथ की गयी है इसलिए इसका नाम ‘चमकम्’ पड़ा ।* रुद्राष्टाध्यायी के अंत में शान्त्याध्याय के २४ मन्त्रों में विभिन्न देवताओं से शान्ति की प्रार्थना की गयी है तथा स्वस्ति-प्रार्थनामंत्राध्याय में १२ मन्त्रों में स्वस्ति (मंगल, कल्याण, सुख) प्रार्थना की गयी है ।

*-रुद्री, लघुरुद्र, महारुद्र और अतिरुद्र अनुष्ठान?*

रुद्राष्टाध्यायी के पांचवें अध्याय रुद्राध्याय की ११ आवृति (एकादश आवर्तन)  और शेष अध्याय की एक आवृति के साथ अभिषेक से एक ‘रुद्री’ होती है इसे ‘एकादशिनी’ भी कहते हैं ।

एकादश (११) रुद्री से लघुरुद्र, ११ लघुरुद्र से महारुद्र और ११ महारुद्र (अर्थात् रुद्राध्याय पाठ के १२१ जप) से अतिरुद्र का अनुष्ठान होता है ।

रुद्री, लघुरुद्र, महारुद्र और अतिरुद्र से भगवान शिव का अभिषेक, पाठ व होम किया जाता है ।

‘लघुरुद्र’ से शिवलिंग का अभिषेक करने वाला साधक मुक्ति प्राप्त करता है ।
‘महारुद्र’  के पाठ, जप व होम से दरिद्र व्यक्ति भी भाग्यवान बन जाता है ।
‘अतिरुद्र’ पाठ व जप की कोई तुलना नहीं है । इससे ब्रह्महत्या जैसे पाप भी दूर हो होते हैं।

*रूद्रहृदयोपनिषद* में शिव के बारे में कहा गया है कि- *सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:* अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।🔱🚩

 

*―आचार्य सुरेश प्रसाद द्विवेदी*
(ज्योतिर्विद, व्याकरणाचार्य)

Manoj Mishra

Editor in Chief

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