मुस्लिम समुदाय में परिवार के भीतर ही शादी करने की परंपरा है. कई देशों में इस परंपरा को प्रमुखता से निभाया जाता है. हालांकि अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी जात-बिरादरी से बाहर जाकर शादियां होती हैं. इस्लाम में शादी को निकाह कहते हैं और इसके लिए पवित्र ग्रंथ कुरान में भी कुछ नियम बताए गए हैं. इन नियमों का पालन करने पर ही शादी जायज मानी जाती है. वहीं जिन बातों को हराम माना गया है, उनसे दूर रहने के लिए कहा गया है. वरना मनाही किए गए इन नियमों को ना मानने से शादी अवैध हो जाती है.
केवल सगे रिश्तों में नहीं होती शादी
इस्लाम धर्म में केवल सगे रिश्तों में शादी नहीं होती है, लेकिन इसके बाहर परिवार में किसी से भी निकाह किया जा सकता है. जैसे-सगे भाई-बहन आपस में शादी नहीं कर सकते हैं. ना ही एक पिता से अलग-अलग पत्नियों द्वारा पैदा हुए बच्चे आपस में शादी कर सकते हैं. इसके अलावा भी कुछ ऐसे रिश्ते हैं, जो भले ही खून के रिश्ते ना हों, फिर भी मुस्लिम लड़का उनसे शादी नहीं कर सकता है.
इस्लाम में इन रिश्तेदारों से हराम है शादी
– कोई भी मुस्लिम लड़का अपने पिता की बहन यानी बुआ से शादी नहीं कर सकता.
– ना ही इस्लाम में खाला यानी कि मौसी से शादी करने की इजाजत है.
– इसी तरह मुस्लिम व्यक्ति अपने भाई की बेटी यानी भतीजी से भी निकाह नहीं कर सकता.
– इस्लाम में लड़के के लिए बहन की बेटी यानी कि भांजी से निकाह करना भी हराम माना गया है.
– कोई भी लड़का अपनी दाई मां, दूध मां से भी शादी नहीं कर सकता है. ना ही दूध मां (जिस मां ने जन्म ना दिया हो लेकिन दूध पिलाया हो) के बच्चों से भी शादी नहीं की जा सकती.
– इसके अलावा इस्लाम में शादी के कारण बने रिश्तों को भी खून का रिश्ता माना गया है. लिहाजा लड़का अपनी सौतेली मां से, अपनी सास से भी निकाह नहीं कर सकता है. Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. जगन्नाथ डॉट कॉम इसकी पुष्टि नहीं करता है.)