बलरामपुर। छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में डायरिया ने एक बार फिर कहर ढा दिया है। जिले के वाड्रफनगर ब्लॉक के पंडो बहुल बेबदी गांव में एक ही परिवार के कई लोग डायरिया की चपेट में आ गए। शुक्रवार सुबह उल्टी-दस्त से पीड़ित 35 वर्षीय महिला लीलावती पति सूरजमल की मौत हो गई, जबकि चार अन्य परिजनों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस घटना ने इलाके में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर चिंता बढ़ा दी है।
परिवार के सदस्यों ने बताया कि लीलावती को गुरुवार से उल्टी-दस्त की शिकायत थी। शुरुआत में परिजन इसे सामान्य बीमारी मानते रहे, लेकिन रात में उसकी हालत गंभीर होती चली गई। लगातार उल्टी-दस्त के कारण उसके हाथ-पांव में खिंचाव आने लगा। शुक्रवार सुबह करीब 7 बजे उसने दम तोड़ दिया। महिला की अचानक मौत से गांव और परिजनों में शोक फैल गया। स्वास्थ्य अमला मौके पर पहुंचा मामले की सूचना मिलते ही स्वास्थ्य विभाग की टीम बेबदी गांव पहुंची और प्रभावित परिवार की जांच शुरू की। टीम ने चार लोगों को तत्काल अस्पताल भेजा। इनमें से जुगमनिया पति रामलाल (36 वर्ष) और बिफिया पति रामशरण (28 वर्ष) को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र वाड्रफनगर में भर्ती किया गया। अन्य दो पीड़ितों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बलंगी में दाखिल किया गया है। गांव में अन्य लोगों की भी जांच की जा रही है ताकि डायरिया के फैलाव को रोका जा सके।

घटना की गंभीरता को देखते हुए बलरामपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. बसंत सिंह स्वयं बेबदी गांव पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवार से मुलाकात कर उनकी स्थिति जानी और स्वास्थ्य अमले को तत्काल सतर्कता बरतने के निर्देश दिए। डॉ. सिंह ने कहा कि डायरिया का प्रकोप फिलहाल एक ही परिवार तक सीमित है। यह जांच की जा रही है कि उन्होंने ऐसा क्या खाया जिससे सभी प्रभावित हो गए। पीड़ित परिवार और गांववासियों को फिलहाल उबला हुआ पानी पीने और स्वच्छता पर ध्यान देने की सलाह दी गई है। साथ ही, शनिवार से गांव में नियमित स्वास्थ्य शिविर लगाया जाएगा, जिसमें अन्य ग्रामीणों की जांच की जाएगी। यदि किसी और को उल्टी-दस्त की शिकायत मिली तो उसे तुरंत इलाज के लिए अस्पताल भेजा जाएगा।

वाड्रफनगर का यह इलाका डायरिया के लिए बेहद संवेदनशील माना जाता है। करीब दो दशक पहले तक हर साल यहां बड़ी संख्या में लोग डायरिया की चपेट में आकर अपनी जान गंवाते थे। ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल का अभाव और स्वच्छता की कमी इसके मुख्य कारण रहे। हालांकि बीते वर्षों में स्थितियों में सुधार आया है। अब लोग नाले और ढोढ़ी का पानी छोड़कर हैंडपंप का पानी पीने लगे हैं, जिससे बीमारी का खतरा कम हुआ है। बावजूद इसके, इस घटना ने फिर से स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मृतका के पति सूरजमल ने बताया कि परिवार के सदस्य 15 अगस्त से लगातार उल्टी-दस्त से जूझ रहे थे। शुरुआत में सबने इसे मौसमी बीमारी समझकर अनदेखा कर दिया। लेकिन हालत बिगड़ने के बाद जब लीलावती को बचाने का प्रयास किया गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। परिवार के अन्य सदस्य भी बीमारी से पीड़ित हैं। इलाज के लिए अस्पताल भेजे गए मरीजों की हालत स्थिर बताई जा रही है। हालांकि परिवार इस बात को लेकर बेहद चिंतित है कि बीमारी गांव के अन्य लोगों में न फैले।
CMHO ने स्वास्थ्य अमले को गांव में जाकर घर-घर सर्वे करने और साफ-सफाई के उपाय कराने के निर्देश दिए हैं। स्वास्थ्य विभाग अब गांव में ओआरएस घोल और जिंक की गोलियां भी बांटेगा। डॉ. सिंह ने कहा कि ऐसे मामलों में सबसे जरूरी है कि लोग दूषित पानी न पिएं और खाने-पीने की चीजों को ढककर रखें। स्वास्थ्य टीम ने ग्रामीणों से अपील की है कि यदि किसी को उल्टी-दस्त की शिकायत हो तो तुरंत स्वास्थ्य केंद्र या कैंप में रिपोर्ट करें। गांव के लोगों में इस घटना के बाद डर का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के मौसम में अक्सर बीमारियां फैलती हैं, लेकिन इस बार एक ही परिवार के कई लोग अचानक बीमार हो गए। वे अब स्वास्थ्य विभाग से स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण अंचलों में डायरिया जैसी बीमारियों को रोकने के लिए शुद्ध पेयजल आपूर्ति, स्वच्छता, और जनजागरूकता बेहद जरूरी है। जब तक लोग साफ पानी पीने और बुनियादी स्वच्छता नियमों का पालन नहीं करेंगे, तब तक डायरिया जैसी बीमारियां बार-बार सिर उठाती रहेंगी।
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