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मौत की गारंटी बन गया रेड कॉरिडोर, नक्सलियों के समक्ष अब दो ही विकल्प – सरेंडर करो या गोली खाओ…

बस्तर। आतंक का अंत एक दिन जरुर होता है। विकास और समाज के लिए नासूर बन चुके नक्सलियों का अंत भी अब करीब आ चुका है। जिस रेड कॉरिडोर में पहले ये नक्सली वारदात को अंजाम देने के बाद गुम हो जाते थे, जवानों ने उस रेड कॉरिडोर को अब चारों ओर से लॉक कर दिया है। नक्सली या तो मारे जा रहे हैं या फिर सरकार के सामने सरेंडर कर रहे हैं। बीते कई दशकों में आतंक पर लगाम की कील ठोकने में जवान कामयाब रहे हैं।

नक्सलगढ़ के नाम से जाना जाने वाला बस्तर कभी बम और बारुद की गंध से पहचाना जाता था। पर्यटन की अपार संभावनाओं को समेटे बस्तर में नक्सलियों का राज होता था। जवानों की हिम्मत और सरकार की तगड़ी रणनीति से अब बस्तर की तस्वीर बदल रही है। बीते पांच दशकों में नक्सलवाद पर लगाम लगाने के लिए जवानों ने माओवादियों के रेड कॉरिडोर को लॉक कर दिया है। नक्सलियों की पूरी सप्लाई लाइन बंद कर दी है। विकास के दुश्मन बने नक्सलियों की असली तस्वीर भी अब जनता जान चुकी है। जिस रेड कॉरिडोर को ये माओवादी अपनी सुरक्षित पनाहगार मानते थे वो अब उनके लिए खतरे की घंटी बजा रहा है।

ये है रेड कॉरिडोर
नक्सलियों को उनकी ही भाषा में जब से जवान जवाब देने लगे हैं तब से नक्सली अपनी जान की भीख मांगते घने जंगलों में भागते फिर रहे हैं। आंध्र, ओडिशा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड के जंगल वाले इलाकों को मिलाकर नक्सलियों ने रेड कॉरिडोर डेवलप किया था। नक्सली बड़ी वारदातों को अंजाम देकर दूसरे राज्यों की सीमाओं में जाकर छिप जाते थे। नक्सलियों को ठिकाने लगाने के लिए पड़ोसी राज्य ने ज्वाइंट ऑपरेशन शुरु किया।

मजबूत किया नेटवर्क
लाल आतंक के खात्मे के लिए फोर्स ने अपना जमीनी नेटवर्क मजबूत किया। मुखबिरों की फौज खड़ी की। धीरे धीरे कर नक्सलियों के सेफ जोन वाले इलाके में घुसे। देखते ही देखते नक्सली अपने सीमित दायरे में सिमटने लगे। जवानों ने इसका फायदा उठाते हुए नक्सलियों को ट्रेस करना शुरु कर दिया। बड़ी संख्या में नक्सली ढेर होने लगे और सरेंडर करने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी। खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ये कह चुके हैं कि आने दो सालों में जो बचे खुचे नक्सली हैं वो भी समाप्त हो जाएंगे। कांकेर में तो चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने खुली चुनौती देते हुए कहा था कि या तो सरेंडर कर दो या फिर गोली खाओ।

सरेंडर करने वालों की संख्या बढ़ी
नक्सलवाद के खात्मे की आवाज अब आदिवासी भी उठाने लगे हैं। सालों से विकास से दूर रहे गांव वाले भी चाहते हैं कि उनके गांव में बिजली पानी आए। उनके बच्चे भी दूसरे बच्चों की तरह पढ़े लिखें। सालों तक नक्सलियों ने गांव वालों को बहकाकर विकास से दूर रखा। खुद को गरीबों और आदिवासियों का मसीहा बताने वाले नक्सली भी अपनी सच्चाई समझ चुके हैं। सरेंडर में आई तेजी ये बता रही है कि नक्सलवाद का अब बस गिना चुना समय ही बचा है।

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