लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव आयोग नरेंद्र मोदी सरकार के साथ मिला हुआ है और उसका रवैया पक्षपात वाला है। बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी को इसका जवाब दिया है।
अनुराग ठाकुर ने कहा है कि किस तरह तीन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद राजनीति में गए और कांग्रेस ने उन्हें आगे बढ़ाया।
अनुराग ठाकुर ने कहा, “रमादेवी जी, एमएस गिल, टीएन शेषन – किस पार्टी ने उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया और वे किस पार्टी में शामिल हुए? उन्होंने चुनाव आयोग का दुरुपयोग किया, बड़ी-बड़ी पोस्टिंग दी… यह राहुल गांधी की कोशिश है कि भारत के लोकतंत्र पर बार-बार हमला किया जाए, उसे कमज़ोर किया जाए, लोगों को गुमराह किया जाए और देश में बांग्लादेश और नेपाल जैसी स्थिति पैदा की जाए।
आईए, इन तीनों चुनाव आयुक्त के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।
दो राज्यों की राज्यपाल रहीं वी.एस. रमादेवी
रमादेवी को 26 नवंबर, 1990 को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था । वह इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं। वीपी सिंह सरकार ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था। वह इस पद पर सिर्फ 16 दिन तक ही रहीं क्योंकि वीपी सिंह सरकार ने बहुमत खो दिया था।
रमादेवी को जब मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था तो उस समय वह विधि और न्याय मंत्रालय में विधायी विभाग की सचिव थीं। मुख्य चुनाव आयुक्त के छोटे से कार्यकाल के बाद वह फिर से कानून मंत्रालय में गईं और वहीं से रिटायर हुईं। जुलाई 1993 में वह राज्यसभा की महासचिव बनीं और इसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली सरकार में उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया। दिसंबर, 2013 में हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई थी।
चुनाव सुधारों के लिए जाना जाता है टीएन शेषन को
टीएन शेषन देश के सबसे हाई प्रोफाइल मुख्य चुनाव आयुक्तों में से एक थे। शेषन का यह बयान काफी चर्चित था जिसमें उन्होंने कहा था कि वह नेताओं को नाश्ते में खा जाते हैं। शेषन 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। शेषन को उनके द्वारा किए गए चुनाव सुधारों के लिए जाना जाता है। चुनाव आयोग में आने से पहले वह नौकरशाह रहे थे। उन्होंने बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को लालच देने और चुनावी हिंसा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए।
1995 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान शेषन ने बूथ कैप्चरिंग और राजनीतिक हिंसा पर लगाम लगाने के लिए जिलाधिकारियों के तबादले कर दिए और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती का आदेश दिया था। तब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव उनसे नाराज हो गए थे।