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पाकिस्तान से रक्षा समझौता करने के पीछे सऊदी अरब का यह है मक़सद

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच ताज़ा रक्षा समझौते के कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने दावा किया है कि भारत के साथ युद्ध होने की स्थिति में सऊदी अरब पाकिस्तान का साथ देगा.

उनका ये बयान ऐसे वक्त आया है जब इस साल पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत जवाबी कार्रवाई की थी. इसके बाद से दोनों पड़ोसियों के बीच संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर हैं.

बीते दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ सऊदी अरब पहुंचे थे. इस दौरान जारी किए गए साझा बयान में दोनों मुल्कों के बीच स्ट्रैटिजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने की बात कही गई थी.

इसके अनुसार, ”दोनों देश किसी भी आक्रामकता के ख़िलाफ़ मिलकर काम करेंगे. अगर दोनों देशों में से किसी एक के ख़िलाफ़ भी कोई आक्रामक होता है तो इसे दोनों के ख़िलाफ़ माना जाएगा.”पाकिस्तान के जियो टीवी के पत्रकार ने  ख्वाजा आसिफसे सवाल किया, “क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने पर सऊदी अरब शामिल होगा?”

इसके जवाब में उन्होंने कहा, “हां, मैं कह सकता हूं कि अगर पाकिस्तान या सऊदी अरब के ख़िलाफ़ हमला होता है तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा और दोनों मिलकर इसका मुक़ाबला करेंगे.”

ख़्वाजा आसिफ़ का ये दावा कई अहम सवाल पैदा करता है. पहला, क्या वाकई युद्ध की स्थिति में जैसा उन्होंने कहा, वैसा होगा. दूसरा, सऊदी अरब के भारत के साथ घनिष्ठ रिश्ते रहे हैं, ऐसे में क्या वह ख़ुद को भारत के ख़िलाफ़ देखना चाहेगा. तीसरा, इस समझौते के पीछे सऊदी अरब के क्या हित हैं.

इन मुद्दों को समझने से पहले, एक नज़र डालते हैं भारत और सऊदी अरब के आपसी रिश्तों पर.

भारत-सऊदी अरब संबंध

दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध 1947 में स्थापित हुए.

2006 में सऊदी किंग भारत आए थे और दोनों मुल्कों के बीच “दिल्ली घोषणापत्र” पर हस्ताक्षर किए गए. इसके बाद 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सऊदी अरब की यात्रा पर गए और इस दौरान “रियाद घोषणापत्र” पर हस्ताक्षर हुए.

2016 में जब प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदीसऊदी अरब दौरे पर गए थे, उन्हें सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “किंग अब्दुलअज़ीज़ सैश” से नवाज़ा गया था.

अगर व्यापार की बात करें तो,  सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भारत ही है. वहीं सऊदी अरब भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है

इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स में वरिष्ठ रीसर्च फेलो फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी कहते हैं कि सऊदी मीडिया में इस समझौते को संयमित तरीके से पेश किया जा रहा है. वहां न तो भारत का ज़िक्र किया जा रहा है और न ही कोई दावा दिख रहा है.

वह कहते हैं, “पाकिस्तान की मीडिया में भारत के संदर्भ में बातें हो रही हैं और बयान देखे जा रहे हैं. इसकी वजह भी साफ़ है क्योंकि भारत के साथ तनाव अब भी बना हुआ है. पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच दशकों से इस तरह के संबंध रहे हैं जिन्हें इस समझौते से औपचारिक शक्ल दी गई है.”

जियो टीवी से बात करते हुए ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा कि इस गठबंधन में शामिल होने के लिए दूसरे अरब मुल्कों के लिए भी दरवाज़े खुले हुए हैं.

साथ ही उन्होंने नेटो जैसे एक सैन्य गठबंधन की ज़रूरत पर भी बल दिया और कहा कि इस इलाक़े में मौजूद देशों का हक़ है कि वो अपनी अवाम के लिए एक रक्षात्मक गठबंधन बनाएं.

फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी इस समझौते को मध्य पूर्व में चल रही हलचल के मद्देनज़र देखते हैं.

वह कहते हैं, “ये समझौता क़तर पर इसराइल के हमले के बाद हुआ है. इस हमले के बाद अब अमेरिका पर यहां के मुल्कों का भरोसा कम हो रहा है. सऊदी अरब भी यहां नए पार्टनर खोज रहा है. उसके पास पैसा है लेकिन एक मज़बूत सेना नहीं है.”

अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं.

वह कहते हैं, “अमेरिका पर अब खाड़ी के देशों को भरोसा नहीं है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान ने भारत के हमले का सामना जिस तरह किया उसके बाद वह एक अहम देश बनकर उभरा. अब वह पश्चिम एशिया में प्रासंगिक हो चुका है.”

मुक़्तदर ख़ान कहते हैं कि खाड़ी में कम ही ऐसे देश हैं जो ज़रूरत पड़ने पर लड़ने के लिए तैयार हो सकते हैं. उनमें पाकिस्तान, तुर्की और ईरान अहम हैं.

वहीं फ़ज़्ज़ुर रहमान कहते हैं “तुर्की नेटो का सदस्य है, इस कारण उसके हाथ बंधे हुए हैं. खाड़ी मुल्कों को उससे अधिक उम्मीद नहीं है. ऐसे में पाकिस्तान सऊदी अरब के लिए अच्छा विकल्प है.”

इस इलाक़े की बात की जाए तो पाकिस्तान के अलावा इसराइल के पास   हैं. इस इलाक़े में ईरान और तुर्की के पास बड़ी सेना है. वहीं सऊदी के पास परमाणु हथियार नहीं है.

 जल्मे अफ़ग़ानिस्तान और इराक में अमेरिकी राजदूत रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर सवाल किया, “क्या यह समझौता सऊदी अरब और शायद अन्य देशों का अमेरिकी डेटेरेंस पर भरोसा कम होने का संकेत है? पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और ऐसे डिलीवरी सिस्टम हैं जो पूरे मध्य पूर्व (इसराइल समेत) को निशाना बना सकते हैं. वह ऐसे सिस्टम बना रहा है जो अमेरिका तक निशाना लगा सकते हैं. बहुत से सवाल खड़े होते हैं.”

इसी साल एक रिपोर्ट छपी थी जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान  लंबी दूरी कीइंटरकॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइलें बना रहा है

Manoj Mishra

Editor in Chief

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