दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) के सदस्य संजीव सान्याल ने शनिवार (20 सितंबर) को कहा कि भारत की न्यायिक प्रणाली यानी ज्यूडिशियल सिस्टम, देश की विकसित अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा में सबसे बड़ी बाधा है.
इस कार्यक्रम में कई मंत्रियों, न्यायाधीशों, नीति निर्माताओं और उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने भविष्य में भारत के कानूनी खाके को आकार देने संबंधी एक दिवसीय चर्चा में हिस्सा लिया, जिसमें सान्याल ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस पंकज मित्तल की उपस्थिति में न्यायिक प्रणाली को लेकर टिप्पणियां कीं.
सान्याल ने तर्क दिया कि अनुबंधों को समय पर लागू करने या न्याय देने में असमर्थता अब इतनी गंभीर बाधा बन गई है कि भौतिक बुनियादी ढांचे या शहरी विकास में कोई भी निवेश इस बाधा की भरपाई नहीं कर सकता.
ज्यादातर नियम-कानून छोटे से हिस्से द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाए गए हैं
उन्होंने ’99-1 समस्या’ पर ज़ोर देते हुए कहा, ‘भारत के अधिकांश नियम और विनियम एक छोटे से हिस्से द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाए गए हैं, क्योंकि कानूनी प्रणाली पर इन अपवादों को शीघ्रता से हल करने का भरोसा नहीं किया जाता है.
उन्होंने कहा, ‘क्योंकि मुझे नहीं लगता कि यह समस्या यहीं सुलझ पाएगी, इसलिए बाकी 99% कानून और नियम उस एक प्रतिशत को हल करने में ही उलझ जाते हैं, और फिर से एक चक्रव्यूह में फंस जाते हैं.’
सान्याल ने मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता को एक ऐसा तरीका बताया, जहां सही नीयत से किया गया सुधार उल्टा पड़ गया.
वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 12ए का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मुंबई की वाणिज्यिक अदालतों के आंकड़े बताते हैं कि मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता के 98 से 99% मामले वास्तव में विफल हो जाते हैं, और इससे मामलों के उन्हीं अदालतों में वापस लौटने में महीनों की देरी और बढ़ी हुई लागत ही जुड़ती है.
उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे मध्यस्थता के विचार से कोई समस्या नहीं है. लेकिन इसे अनिवार्य बनाने से समस्या पैदा हुई है… आपने बस प्रक्रिया में छह महीने जोड़ दिए हैं. इसे स्वैच्छिक क्यों नहीं बना दिया?’
उन्होंने बताया कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 से इसी तरह का एक खंड हटाने से पहले उन्हें और अन्य लोगों को हस्तक्षेप करना पड़ा था. सान्याल के अनुसार, भारत की कानूनी व्यवस्था में वकालत का ढांचा मध्ययुगीन काल का है. यहां अलग-अलग लेवल हैं, जैसे- सीनियर एडवोकेट, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड या फिर अन्य.
उन्होंने कहा, ’21वीं सदी में इन सभी लोगों की ज़रूरत क्यों है?… क़ानूनी काम के कई स्तरों पर, आपको अपने मामले पर बहस करने के लिए किसी के पास क़ानूनी डिग्री क्यों होनी चाहिए? यह एआई का युग है.’
उन्होंने औपनिवेशिक काल की अदालती भाषा और प्रथाओं पर भी निशाना साधा.
उन्होंने कहा, ‘आप ऐसा पेशा नहीं अपना सकते जहां आप ‘माई लॉर्ड’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें, या जब आप कोई याचिका दायर कर रहे हों तो उसे प्रार्थना कहा जाए. आप मज़ाक कर रहे हैं. हम सभी एक ही लोकतांत्रिक गणराज्य के नागरिक हैं.’
अदालतों में लंबी छुट्टियों की प्रथा की भी आलोचना
इस अवसर पर सान्याल ने कहा कि न्यायपालिका भी राज्य के किसी भी अन्य हिस्से की तरह एक सार्वजनिक सेवा है. क्या आप पुलिस विभाग या अस्पतालों को महीनों तक बंद रखते हैं क्योंकि अधिकारी गर्मी की छुट्टियां चाहते हैं?
सान्याल ने अंत में कानूनी बिरादरी से ‘अपनी कमर कसने’ और सुधारों को अपनाने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास इसे बनाने के लिए लगभग 20-25 साल हैं. हमारे पास बर्बाद करने के लिए समय नहीं है. आप भी उतने ही नागरिक हैं जितना मैं हूं… प्यारे साथी नागरिकों, वह क्षण आ गया है, हम वो पीढ़ी हैं जिसका हमें इंतज़ार था. कोई और ऐसा नहीं करने वाला. यह आपके और मेरे बीच की बात है. हम एक ही नाव पर सवार हैं.’
उन्होंने वहां मौजूद लोगों को याद दिलाया कि उन्होंने अतीत में नौकरशाहों, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और यहां तक कि साथी अर्थशास्त्रियों से भी समान स्पष्टता से बात की है और परिवर्तन केवल ‘चीजों पर पहले सिद्धांतों से सवाल उठाने की इच्छा’ से आता है.