-दीपक रंजन दास
“बटकी म बासी अउ चुटकी म नून, मैं गावत हंव ददरिया तैं कान देके सुन.” दो साल पहले मजदूर दिवस से पहले इस ददरिया ने खूब हंगामा मचाया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोगों से कहा था कि छत्तीसगढ़ के इस पारम्परिक व्यंजन को अब गरिमा प्रदान करने का वक्त आ गया है. युवा पीढ़ी को बासी खाने के लिए प्रेरित करने के लिए उन्होंने यह भी कहा कि बोरे बासी शरीर को ठंडा रखता है. पाचन शक्ति बढ़ाता है. त्वचा की कोमलता और वजन संतुलित करने में भी यह रामबाण है. बोरे बासी में सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं. हालांकि, दुनिया इसे गरीब का भोजन समझती है पर असल में यह मैदानी छत्तीसगढ़ के लिए रामबाण की तरह है. छत्तीसगढ़ ही क्यों पड़ोसी राज्य ओडीशा में भी प्रतिवर्ष 20 मार्च को ‘पखाल दिवस’ मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 2014 में की गई थी. माना जाता है कि ‘पखाल’ अर्थात पके हुए चावल को ठंडे पानी में डालने की शुरुआत भी ओडीशा से ही हुई. 10वीं सदी के आसपास पुरी के जगन्नाथ मंदिर में पखाल बनाए जाने का उल्लेख मिलता है. पखाल दो प्रकार का होता है. रात में बचे हुए चावल को पानी में डुबो कर सुबह उसे ग्रहण करने को ठंडा पखाल और दिन में पके चावल को पुनः ठंडे पानी में डालकर उसे ग्रहण करना गर्म पखाल कहलाता है. छत्तीसगढ़ी में इसे क्रमशः बासी और बोरे कहा जाता है. वैज्ञानिक तथ्यों के मुताबिक बोरे और बासी में ग्रीष्म ऋतु को मात देने की अद्भुत क्षमता होती है. बोरे-बासी गर्मियों में लोगों की सुरक्षा करती है. बोरे बासी को पौष्टिक आहार माना गया है. गर्मी के मौसम में जब तापमान अधिक होता है तब बोरे बासी लू से बचाने का काम करती है. बोरे-बासी में प्रचुर मात्रा में पानी होता है. उल्टी, दस्त जैसी बीमारियों में यह शरीर में पानी की कमी को दूर करती है. छत्तीसगढ़ में इसका सेवन दही, अथान पापड़, चटनी, बिजौरी, भाजी जैसी चीजों के साथ किया जाता है. बोरे बासी जहां गर्मी के मौसम में ठंडक प्रदान करती है, वहीं पेट विकार को दूर करने के साथ ही पाचन के लिए यह गुणकारी भोजन है. इसीलिए जब 1 मई 2022 को छत्तीसगढ़ ने पहली बार बोरे-बासी दिवस मनाया तब कलेक्टर, आईजी से लेकर सभी उच्च पदस्थ शासकीय अधिकारियों, विधायकों एवं सांसदों ने भी अकेले या सामूहिक रूप से बोरे-बासी का सेवन किया और इसकी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर साझा की. सभी अखबारों में इन तस्वीरों को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया गया. अनेक होटल और रेस्तरां भी बोरे-बासी परोसने लगे. मजदूर दिवस को अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. पर अब राज्य में सत्ता बदल चुकी है. देखना यह है कि क्या बोरे-बासी भी राजनीति का शिकार हो जाती है या इस सहज-सुलभ रामबाण औषधि को आगे बढ़ाने में साय सरकार भी अपना योगदान देती है.
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